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आत्म-साधना का मार्ग'
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो !
कई दिनों से हमारा विषय क्रिया रुचि के स्वरूप की जानकारी के लिये चल रहा है । क्रिया रुचि किसे कहते हैं इस सम्बन्ध में ज्ञान, दर्शन, चारित्र तप, विनय और सत्य का वर्णन समयानुसार किया जा चुका है। अब गाथा में 'समिई' शब्द है । समिई यानी समिति ।
व्याकरण शास्त्र की दृष्टि से देखा जाय तो समिति में 'सम्' उपसर्ग है और इति 'इण' धातु है । इण का अर्थ है चलना। यह सब मिलाकर समिति का अर्थ होता है अच्छी तरह से चलना। पर प्रश्न उठता है समिति अच्छी तरह से किधर चलने को कहती है ? क्या दिल्ली बम्बई जैसे बड़े-बड़े नगरों की ओर या अमेरिका इगलण्ड जैसे विदेशों की ओर ? नहीं, वह मोक्ष मार्ग की ओर अच्छी तरह से गति करने को कहती है । मोक्ष मार्ग के विरुद्ध चलना समिति नहीं कहलाती।
समिति पांच प्रकार की है- ईर्या समिति भाषा समिति, एषणा समिति आदानभाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति तथा उच्चार प्रश्रवण खेल जल्ल सिंघाण परिष्ठायनिका समिति ।
(१) पांच समितियों में पहली ईर्या समिति है। ईर्या समिति किसे कहते हें यह योग शास्त्र में बताया गया है
लोकातिवाहिते मार्गे, चुम्बिते भास्वदंशुभिः । जन्तुरक्षार्थमालोक्य, गतिरीर्या मता सताम् ।।
अर्थात् -- जिस मार्ग पर लोगों का आवागमन हो चुका हो और जिस पर सूर्य की किरणें पड़ रही हों या पड़ चुकी हों , उस पर जीव-जन्तुओं की रक्षा के लिये आगे की चार हाथ भूमि देखकर चलना सन्त पुरुषों के मत से ईर्या समिति है।
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