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________________ २०२ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग गया है । भो भय प्रागी ऐसा करते हैं वे ही अज्ञान के अन्धकार को चीरकर ज्ञान के आलोक की ओर बढ़ते हैं तथा आत्मा को परमात्मा बनाने की योग्यता हासिल करते हैं। इसलिए प्रत्येक मुमुक्षु को अगर अपनी आत्मा का कल्याण करना है तथा चिरकाल से इस संसार-चक्र में पिसती हुई अपनी आत्मा को अनन्त दुःखों से बचाना है तो उसे मन, वचन और कर्म इन तीनों से ही सत्य को रमाना होगा अन्यथा लक्ष्य-सिद्धि उससे कोसों दूर रहेगी। सत्य भाषण भी धजित है बन्धुओ सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि क्या सत्य बोलना भी कभी हानिकर होता है और जिसे बोलने से इन्कार किया जाता है ? हाँ, यह सत्य है। हमारे शास्त्र कहते हैं- सत्य का मूल ऋजुता अर्थात् सरलता है तथा असत्य का मूल क्रोध मान, माया तथा लोभ आदि चारों कषाय है । आप जानते ही हैं कि कषाय के वश में होकर जो भी कार्य किया जाता है, विचारा और बोला जाता है वह सही अर्थों में अपना शुभ परिणाम नहीं दिखाता:। इसी प्रकार किसी भी कषाय के आवेश में बोला हुआ सत्य भी असत्य ही साबित होता है। मानव जब वासनाओं के फन्दे में फंसा रहता है, भोगलिप्सा में ग्रस्त रहता है तथा लोभ और लालच में पड़कर अपना विवेक खो बैठता है उस समय अगर वह सत्य भी बोलता है तो वह असत्य ही माना जाता है । इसी प्रकार किसी को अपमानित करने के उद्देश्य से, किसी के प्रति व्यंग करने के विचार से अथवा किसी का उपहास करने की दृष्टि से अगर वह सत्य बोले तो असत्य की कोटि में गिना जाता है। दशवकालिक सूत्र में कहा भी है तहेव काणं काणत्ति, पंडगं पंडगत्तिय । वाहियं वावि रोगत्ति, तेणं चोरेत्ति नो वए । अर्थात्-क्रोध कषाय के वशीभूत होकर किसी काने व्यक्ति को काना कहना, नपुसंक को नपुसक कहना अथवा चोर को चोर कहना सत्य होने पर भी कष्ट, पहुंचाने का कारण बनता है अतः ऐसा सत्य बोलना वर्जित है। इसीलिये महापुरष कभी ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करते तथा ऐसा सत्य नहीं बोलते जो अन्य प्राणी को दुःख पहुंचाता है और उसके अनिष्ट का कारण बनता है। एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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