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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
असत्य का पुट दिये
को झूठा और झूठे दुकानदार वस्तुओं
इस संसार में आजकल मनुष्य अपनी प्रत्येक क्रिया में बिना नहीं रहता । कचहरी में देखा जाय तो वकील सच्चे को सच्चा प्रमाणित करने के प्रयत्न में रहते हैं, दुकानों पर की अधिक कीमतें बताकर लोगों को ठगने की कोशिश करते हैं और परिवार में भी प्रत्येक सदस्य असत्य भाषण करके अपने पिता का भाई का या अन्य किसी का धन हड़प जाने की फिराक में रहता है ।
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इन सब बातों को लक्ष्य कर किसी कवि ने मनुष्य को झिड़की दी है :झूल कपट सू मन भर्यो ज्ञान ध्यान सूं दूर, काम क्रोध से वन कर्यो रह्यो घमण्ड में चूर, नूर सब खोय दियो थारो ।
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कहा है – “अरे अज्ञानी ! तू जीवन भर झूठ और कपट के धन्धे ही करता रहा और इसी कारण ज्ञान-ध्यान में तेरा चित्त नहीं लगा । केवल भोगों की तृप्ति के लिये और अपने अहंकार का पोषण करने की तेरी प्रवृत्ति बनी रही किन्तु इसका परिणाम क्या हुआ ? यही कि तूने अपना नूर या कि गौरव-खो दिया ।" और -
सट्टा पट्टा तू किया, किया अनोखा काम । काल बजारी में फँस्यो, लियो न सत गुरुनाम । कमायो खोय दियो सारो 1
" अरे मूर्ख ! यह मानव जन्म पाकर तूने क्या किया ? यही अनोखा कार्य किया कि या तो सट्टे के बाजार में उन्मत्त की तरह दाव लगाता रहा और इससे भी सब्र नहीं हुआ तो काला धन्धा करता रहा। बस इनसे तुझे फुरसत ही नहीं मिली कि कभी ईश्वर का स्मरण करता । पर क्या तू समझता है मैंने कमाई कर ली है ? नहीं यह जान ले कि उलटे इस सब के कारण तूने पूर्व जन्मों में किये गये पुण्य की सारी कमाइ खो दी है । जिन पुण्य कर्मों के बल पर यह दुर्लभ देह तुझे मिली थी उस संचित कमाई को भी तूने नष्ट कर दिया है ।
कवि ने आगे भी कहा है
बड़ा बनाया बंगलड़ा, किया पाप रा काम । रिस्वत सू धन जोड़ियो-झूठ कमायो नाम ॥ बढ़ायो आरम्भ रो बारो ।
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"अरे भोले प्राणी ! तूने पाप कर्म कर करके बड़े-बड़े बंगले बनवा लिये हैं पर क्या तू इनमें हमेशा ही बना रह सकेगा ? इसी द्वार से निकालेंगे
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एक महात्मा घूमते-घामते दिनों अपनी बड़ी भारी हवेली
किसी सेठ के घर जा पहुँचे । सेठ ने उन्हीं बनवाई थी । अतः महात्मा जी को भोजन करा
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