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आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग
सत्य की रक्षा
एक बारह व्रतधारी श्रावक थे। उनके एक ही पुत्र था । इकलौता लड़का होने के कारण वह बड़े लाड़ प्यार में पल रहा था। परिणाम यह हुआ कि उस पर किसी का अनुशासन या अंकुश नहीं रह सका तथा वह दुष्ट मित्रों की संगति में पड़ गया। दुर्जनों को संगति के कारण उसमें और अनेक अवगुण तो मा ही गये, साथ ही वह चोरी करने में भी निपुण हो गया।
धीरे-धीरे कई व्यक्ति आकर श्रावक के आगे शिकायतें करना प्रारम्भ किया कि आपका पुत्र चोरी करता है । यह सुनकर पिता को बड़ा दुख हुआ पर उन्होंने प्रेम से पुत्र को समझाया-"बेटा ! चोरी करना महापाप है, साथ ही वह अपयश का कारण भी बनता है अतः इस दुर्गुण का त्याग कर दो। लोग मुझे उपालम्भ देते हैं।"
किन्तु पुत्र ने उत्तर दिया-"पिताजी ! आपने मुझे चोरी करते हुए देखा है क्या ? लोग आकर झूठी शिकायतें करने लग जाय तो मैं क्या करूं।"
बेचारा पिता चुप हो गया। कहता भी क्या ? उसने आंखों से तो लड़के को चोरी करते देखा नहीं था। पर पाप का घड़ा कभी न कभी फूटता ही है। एक बार वह लड़का चोरी करते हुए पकड़ा गया और लोगों ने गवाह के रूप में उसके पिता का ही नाम लिखवा दिया। क्योंकि वे जानते थे कि श्रावक कभी झूठ नहीं बोलते। ___ अब जब चोर पुत्र का मुकदमा न्यायालय में उपस्थित हुआ तो उसके पिता को गवाही के लिये बुलवाया गया। जज ने उससे प्रश्न किया-"क्या तुम्हारा लड़का चोरियां करता है ? इस चोरी में भी उसका हाथ है क्या ? ___अब श्रावक के सामने बड़ी कठिनाई आ उपस्थित हुई। झूठ वह बोल नहीं सकता फिर कहे क्या ? सत्य बोले तो बेटा जेल जाता है और असत्य कहे तो उसके व्रत खण्डित होते हैं।
फिर भी उसने पूर्णतया विचार कर सत्य बोलने का ही निश्चय किया और मर्यादित शब्दों में उत्तर दिया
"साहब ! आपने मेरे पुत्र के बारे में पूछा है । यद्यपि मैंने इसे चोरी करते हुए कभी देखा नहीं है किन्तु लोगों ने समय-समय पर आकर अवश्य इसके चोरी करने की शिकायतें मुझसे की हैं। यह आपके सामने है आप जैसा उचित समझें करें। मुझे कुछ भी नहीं कहना है।"
श्रावक के और एक पिता के यह शब्द सुनकर मजिस्ट्रेट अत्यन्त प्रभावित हुआ। उसके हृदय में आया "कितना सत्यवादी पिता है यह ? पर कैसा दुर्भाग्य है कि इसके ऐसा कुपुत्र पैदा हुआ।"
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