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इन्द्रियों को सही दिशा बताओ!
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो !
कल मैंने आपको ज्ञान-प्राप्ति का दसवाँ कारण समझाया था कि ज्ञानवन्त के पास ही ज्ञान लेना चाहिए। आज ज्ञान प्राप्ति के ग्यारहवें कारण पर विवेचन करना है । यह है - इन्द्रियों के विषयों का त्याग करना ।
जो महामानव अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है, वही सम्यक्ज्ञान हासिल कर सकता है । इन्द्रियों के मुख्य पाँच विषय हैं - शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श । यों तो इन्द्रियों के तेईस विषय और दो सौ चालीस विकार बताये गये हैं और इस प्रकार विस्तृत रूप से इनके सम्बन्ध में समझाया गया है । किन्तु हमें अभी इन पाँच मुख्य विषयों को ही लेना है।
अनर्थकारी इन्द्रियाँ
मानव इस संसार में रहकर जितने भी पापों का उपार्जन करता है, वे सब इन्द्रियों के वश में न रह पाने के कारण ही करता है। इन्द्रियों के वश में होकर ही वह संसार में पुनः पुनः जन्म लेता है और मरता है । किसी भी तरह मृत्यु के चंगुल से छूट नहीं पाता । और छुटेगा भी कैसे ? किसो विद्वान ने कहा है :
कुरंगमातंगपतंगभगमीना हता पंचभिरेव पंच । एक: प्रमादी स कर्थ न न हन्यते यस्सेवते पंचभिरेव पंच ।।
अर्थात् - हिरण गाने से हाथी हस्तिनी से, पतंग दीपक से, भ्रमर गन्ध से और मछलियाँ जीभ के स्वाद से मोहित होकर अपने प्राण खो देती हैं । फिर जिन्हें पाँच इन्द्रियाँ हैं और जो सभी विषयों की आसक्ति में फंसते हैं तो उनको मृत्यु क्यों छोड़ेगी।
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