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आनन्द प्रवचन : तुतीय भाग
पडितजी बेचारे राज-दरबार से बुलावा आने के कारण वैसे भी घबराये हुए थे पर धीरे-धीरे बोले--
" "महाराज ! गंगा नदी के किनारे एक कुम्हार के घर में पूर्व जन्म के कोई महान योगी गधे के रूप में रहते थे और जब मैं प्रतिदिन प्रातःकाल गायत्री मन्त्र का पाठ करता था वे भी मेरे साथ मन्त्र बोला करते थे।"
पंडित जी की बात सुनकर राजा और समस्त दरबारी सही बात समझ गये और हँस पड़े । राजा बोले-'मन्त्री जी, आप लोगों की बुद्धि का कितना सुन्दर प्रमाण है ? अरे ! पंडितजी तो महाज्ञानवान हैं क्या आप लोग भी अब ऐपे ज्ञानी हो गए हैं ? तब तो हो चुका मेरे राज्य का कल्याण ।" राजा की बात सुनकर मन्त्री जी व सेठजी अत्यन्त शर्मिन्दा हुए और मस्तक झुकाकर घर लौट आए। .. तो बंधुओ ! मेरे कहने का आशय यही है कि संसार में ऐसे ऐसे ज्ञानवंतों की भी कमी नहीं है । किन्त अगर हमें मोक्ष-प्राप्ति का सही मार्ग जानना है तो हमें सच्चे ज्ञान वान की भी खोज करनी चाहिए तथा उनसे सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति करके उस मार्ग पर दम दाने चाहिए। हमारा जीवन अल्प है किन्तु साधना बहुत व रनी है। अगर समय इसी प्रकार व्यथं जाता रहेगा तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा । एक उर्दू के कवि ने भी कहा है :- .....
रहती है कब बहारे जवानी तमाम उम्र ।
__ मानिन्द बूये गुल, इधर आई उधर गई ।। कवि का कथन यथार्थ है । जिन्दगी तो अल्पकालीन है ही, उसमें भी युवावस्था, जिस समय मनुष्य अधिक से अधिक साधना कर सकता है वह तो फूल की खुशबू के समान है जो एक ही झोंके में इधर से उधर चली जाती है ।
इसलिए हमें समय व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए तथा सच्चे ज्ञानवान के पास ज्ञान हासिल करके आत्म-ज्योति जगाते हुए संसार मुक्त होने का प्रयत्न करना चाहिए।
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