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दीप से दीप जलाओ
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सेठजी के गौरव को चोट लगी और अपने आपको नगर का अगुआ मानकर उन्होंने भी नाई के यहाँ जाकर पहला कार्य सिर मुड़ाने का किया । इसके बाद जैसा कि उनका प्रोग्राम था राज्य के मन्त्री से मिलने का और इसीलिए वे अपनी हवेली से चले थे, अब चल दिए ।
सुबह-सुबह ही सिर मुड़ाए नगर सेठ को अपने यहाँ आया हुआ देखकर मन्त्री जी चकराए और सर्वप्रथम इसका कारण पूछा। सेठ जी ने उत्तर दिया
"हमारे पंडित जी ने बताया है कि आज अपने नगर में एक महान् योगीराज का स्वर्गवास हो गया है और अगर उनका शोक हमने नहीं मनाया तो राज्य के बड़े आदमी होने के नाते लोग हमें बुरा कहेंगे । इसलिए सोचा कम से कम इतना तो कर ही लिया जाय ताकि लोग मान जाएँ कि हमें भी योगीराज के निधन का शोक है । मैं तो कहता हूँ कि आपको भी ऐसा ही करना चाहिये अन्यथा लोग कहेंगे इस राज्य के बड़े-बड़े आदमियों में किसी को भी धर्म पर और धर्मात्माओं पर श्रद्धा नहीं है ।"
सेठ जी की बात मन्त्री को भी उचित जान पड़ी उन्होंने भी अपना मस्तक केश-रहित करवाकर नगर में हुए महान् योगी के निधन का शोक मनाया । किन्तु जब वे राज दरबार में पहुंचे तो महाराज को नमस्कार करते ही उन्होंने पहला प्रश्न यही पूछा - " मन्त्रिवर ! क्या हुआ है ? आज आपने मस्तक कैसे मुंडाया ?"
"अन्नदाता ! आज हमारे नगर में एक महान् और सिद्ध योगी का स्वर्गवास हो गया है ।"
“अच्छा ! क्या नाम था उनका ? राजा ने सहज भाव से पूछा ।" " नाम तो मुझे मालूम नहीं है महाराज !"
"तो वे नगर में कब से रह रहे थे, और कहाँ ठहरे हुए थे ?" "मुझे यह भी मालूम नहीं है हुजूर !"
राजा बड़े चकित हुए । बोले “ आपको कुछ भी मालूम नहीं है तो फिर उनके स्वर्गवासी होने का शोक किसके कहने से मनाया है ?"
"मुझे तो नगर सेल ने बताया था ।” मन्त्री ने कुछ शर्मिन्दा होते हुए उत्तर दिया ।
राजा ने सेठजी को बुलवाया और उनसे भी योगीराज के विषय में पूछा । पर सेठजी क्या जानते थे जो बताते, उन्होंने पंडित जी का नाम लिया । अब राजा का कुतूहल बढ़ा अतः उन्होंने पंडितजी को भी बुलवाया और उनसे स्वयं उनके, सेठजी के और मन्त्री के सिर मुंडाकर शोक मनाने का कारण पूछा ।
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