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________________ स्वाध्याय : परम तप १२३ तेरी ही कृपा तें दूर कुमति पलाय जाय, तेरी ही कृपा तें हित सुमति प्रकाश होय । तेरी ही कृपा तें गण दोष टलि जाय सब, तेरी ही कृपा तेंवर काव्य को अभ्यास होय । तेरी ही कृपा तें विद्या बुद्धि बल बधे माय, अमीरिख सकल सफल उर आस होय । पूज्यपाद श्री अमीऋषि जी महाराज को कितनी भाव भरी प्रार्थना है ? कहते हैं - "हे जिन वाणी माता ! तू मुझ पर कृपा कर । क्योंकि तेरी कृपा होने से ही बुद्धि पर छाया हुआ अन्धकार लुप्त हो सकता है तथा ज्ञान रूपी सूर्य का प्रकाश आत्मा में फैल सकता है।" "तेरी कृपा से ही दुर्बुद्धि का पलायन हो सकता है तथा उसके स्थान पर सुबुद्धि अपने दिव्य आलोक सहित मेरे मन में प्रवेश कर सकता है।" "तेरी कृपा होने पर ही मेरे समस्त दोष नष्ट हो सकते हैं तथा मुझे सुन्दर एवं आत्म-हितकारी काव्यों का अभ्यास हो सकता है।" "अधिक क्या कहूँ ? हे देवी! तेरी कृपा - हो जाय तो मेरा विद्या और बुद्धि का बल बढ़ सकता है और मेरे हृदय की समस्त कामनाएँ फलीभूत हो सकती हैं।" - कवि ने आगे कहा है-जिन-जिन पर तेरी कृपा हुई है वे सभी इस संसार सागर से पार हो गये हैं तथा अपने जीवन को सफल बना गए हैं ! मैं भी तुम्हारी कृपा का हृदय से अभिलाषी हूँ क्योंकि : तेरी ही कृपा तें घने जड़मति दक्ष बने, तेरी ही कृपा तें शुम जग जस छायो है । तेरी ही कृपा तें श्रतसागर को पावे पार, तेरी ही कृपा ते गणराजा पद पायो है। तेरी ही कृपा तें सब आगम सुगम होय, आगम में तेरो ही अखंड बल गायो है । सुमति बढ़ाय दे हटाय दे अज्ञान तम, अमीरिख जननी शरण तव आयो है । कहते हैं- 'मैंने सुना है और पढ़ा है कि तेरी कृपा से महामूर्ख भी पंडित बन गये हैं और सम्पूर्ण जगत में अपने यश का प्रसार कर गए हैं।" तेरी कृग से ही अनेक जड़मति श्रुत-सागर में गोते लगाकर अपूर्व निधि प्राप्त कर चुके हैं और गणराज कहलाए हैं।" _ 'मैं और कुछ नहीं जानता पर इस बात पर अटूट विश्व स रखता हूँ कि अगर तेरी कृपा हो जाय तो समस्त आगम मेरे लिए अत्यन्त सुगम और दूसरे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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