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________________ १०८ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग जिसमें एक काँटा भी चुभ ज ये तो हम सहन नहीं कर पाते, बाल्यावस्था में कितना कोमल और कपनीय होता है, युवावस्था में महान् शक्तिशाली और तेजस्वी के रूप में आता है तथा जब वृद्धावस्था आती हैं अपने समस्त सौन्दर्य, शक्ति एवं ओज को खोकर जर्जर शक्तिहीन तथा पराधीन बन जाता है । और उसके पश्चात् आप जानते ही हैं कि किसी भी समय चैतन्यता रहित होकर चिता में भस्म हो जाता है तथा हड्डियाँ यत्र-तत्र पड़ी रहती हैं । किसी ने बड़ी सरल और सीधी भाषा में कहा भी है -- कहाँ जन्मा, कहाँ उपना कहाँ लड़ाया लाड़ ? क्या जाने किस खाड़ में पड़ा रहेगा हाड़ ? 1 साहित्यिक दृष्टि से पद्य में कोई विशेषता या आकर्षण नहीं है किन्तु भाव कितना मर्मस्पर्शी है ? मनुष्य की जीवन-यात्रा कितनी अजीबो-गरीब स्थिति में से होकर गुजरती है और समाप्त होती है यही इसमें बाया गया है । कहा है -- बालक कहाँ जन्म लेता और कहाँ उसका पालन-पोषण होता है । जो भाग्यवान होते हैं उनके मस्तक पर माता-पिता की छाया रहती है और जिनके अशुभ कर्मों का उदय होता है वे कभी तो माता को ही खो देते हैं या दरिद्रावस्था में भूखे पेट रहकर होश सम्हालते हैं । कोई अनाथालय में शरण लेने को भी मजबूर हो जाते हैं । इस प्रकार कहीं जन्म लेते हैं और कहीं बड़े होते हैं । कोई माता-पिता के असीम लाड़-प्यार का अनुभव करते हैं और कोई जन-जन की झिड़कियाँ खाकर अपमानित होते हुए बाल्यकाल व्यतीत करते हैं । और इसके पश्चात् जब युवावस्था आती है तब श्रीमानों की सन्तान तो गुलछर्रे उड़ाकर अपने ऐश-आराम में निमग्न रहकर कर्म-बंधन करती है और दरिद्र की संतान-भूखे पेट सुबह से शाम तक मजदूरी करके पेट भरती है । अनेक व्यक्ति देश-विदेशों की खाक छानकर भी परिवार का पालन-पोषण करते हैं अभिप्राय यही है कि किसी का भी जीवन स्थिर और शांतिपूर्ण नहीं होता । वृद्धावस्था में तो व्यक्ति स्वयं ही निरुपाय होकर अपने शरीर के कष्टों को भुगतता है तथा परिवार के सदस्यों की अपेक्षा और भर्त्सना को विष के घूँट की तरह पीता हुआ मूक रुदन करता है । तत्पश्चात् जब किसी तरह नानाप्रकर के कष्टों का अंत मृत्यु के रूप में हो जाता है तो उसकी हड्डियाँ भी न जाने कौन-कौन से गढ्डों में पड़ी हुई किसी विगत जीवन का आभास मात्र देतो हैं । तो मनुष्य की जीवन यात्रा इसी प्रकार भिन्न-भिन्न और अजीब-अजीब परिस्थितियों में से गुजरती है । कोई यहाँ धन के लिये रोता है, और कोई स्वास्थ्य के लिये । कोई पुत्र के न होने पर दुःखी होता है और कोई पुत्र के कुपुत्र साबित होने पर परेशान होता है । किसी को पत्नी ककशा होती है तो किसी की अल्पकाल में ही संसार से प्रयाण कर जाती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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