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असार संसार
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनों !
ज्ञान-प्राप्ति के ग्यारह कारणों में से आठवां कारण है- संसार को असार समझना। .
__ सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि संसार को असार समझ लेने मात्र से ही ज्ञान कैसे प्राप्त हो जाएगा ? वास्तव में ही इतना-सा कह देना कि संसार को असार समझे तो ज्ञान की प्राप्ति हो, काफी नहीं है । यद्यपि बात यह सत्य है किन्तु बिना इस बात के पीछे रहे हए रहस्य को समझे सावधान नहीं हो सकता । हमें इस बात को भली-भांति समझना पड़ेगा कि संसार को असार समझने का क्या परिणाम होगा, अथवा किन भावनाओं का उदय होगा जो ज्ञान-प्राप्ति में सहायक बनेंगी। संसार असार क्यों है ?
संसार को इसीलिए असार माना जाता है कि प्रथम तो हमारे चर्म-चक्षुओं से दिखाई देने वाली जो भी वस्तु है वह नाशवान है। बड़े-बड़े आलीशान मकान, धन-दौलत, पेड़-पौधे तथा संसार में रहने वाले प्रत्येक जीव का शरीर भी नश्वर है । इनसे हम कितना भी गहरा सम्बन्ध रखें इन पर अपना प्रभुत्व जमाएँ किन्तु, या तो एक दिन ये सब स्वयं नष्ट हो जाएँगे या फिर हमारी आत्मा को ही इन्हें छोड़कर किसी दिन जाना पड़ेगा। प्रौढ़ कवि पूज्यपाद श्री अमीऋषि जी महाराज ने संसार की असारता को बताते हुए एक बड़ा सुन्दर पद्य लिखा है । वह इस प्रकार है
आयु है अथिर जैसे अंजली के नीर सम,
दौलत चपलता ज्यों दामिनी पलक में। यौवन पतंग रंग, काया है नीकाम अति,
वार नहीं लागे ओस बिन्दु की ढलक में। सुपन समान यह, संपदा पिछान मन,
सरिता को पूर ढल जाय ज्यों पलक में ।
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