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________________ ६६ आनन्द प्रवचन : तृतीय भाग ___ आप जानते ही होंगे कि भावनाओं की लीला बड़ी जबर्दस्त है। उनमें थोड़ा-सा हेर-फेर भी परिणाम में इतना महान् परिवर्तन ला देता है कि उस पर सहज ही विश्वास नहीं हो पाता । यह एक अकाट्य सत्य भी है । भावनाओं के उतार और चढ़ाव से जीव आधे क्षण में सातवें नरक का और अगले आधे क्षण में ही मोक्ष का बंध भी कर लेता है। तो ऐसी नाजुक भावनाओं को क्या आप अपने नियंत्रण में रख पाते हैं ? अनेक व्यक्ति कहते हैं- "महाराज, शास्त्रों में पढते हैं कि प्राचीनकाल में तो बेले ओर तेले की तपस्या करने पर ही तपस्या करने वाले की सेवा में देवता आ उपस्थित होते हैं किन्तु आज तो महीने भर की ही क्या दो-दो महीने की तपस्या कर लेने पर भी देवता का दूत भी पास में नहीं फटकता।" ___ सुनकर हँसी आ जाती है पर इसका उत्तर मैं समझता हूँ कि आपको दे चुका हूँ और वह यही है कि तपस्या के साथ-साथ दृढ़ आत्म-शक्ति, भावनाओं की प्रबलता एव चिंतन की अटूट एकाग्रता ही इसका कारण है। आज यह बात कदापि संभव नहीं है कि आप अपनी तपस्या के साथ अपनी भावनाओं को भी वैसी दृढ़ता से संयमित रख सकें। उपवास आदि में तो क्या, एक सामायिक के काल में भी आपका मन स्थिर नहीं रह पाता। सामायिक लेकर व्याख्यान सुनते हैं उस समय भी आपकी निगाह प्रत्येक आने वाले की ओर फौरन उठ जाती है तथा मन तो प्रवचन-स्थल में भी नहीं रह पाता । वह कभी बाजार, कभी घर और कभी बसों तथा ट्रेनों में सफर करता रहता है। एक मिनट भी वह एक स्थान पर आत्माभिमुख होकर नहीं रहता फिर देवताओं के आने की आशा आप किस बूते पर कहते हैं ? ___तो अब यही बतलाना चाहता हूँ कि तपस्या कैसी करनी चाहिये ? और कैसी तपस्या करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है जो मुक्ति का कारण बन सकता है। हमारा आज का विषय यही है कि तप करने से ज्ञान बढ़ता है। किन्तु कैसा तप ? उत्तर है-कपट रहित तप किया जाये तो ज्ञान की प्राप्ति होती है। कपट किसे कहते हैं ? ___ शास्त्रीय दृष्टि से कपट तीसरा कषाय है । हम कपट करें या माया, एक ही अर्थ का सूचक है । माया शब्द के भी कई अर्थ हैं । यथा-माया यानी मोहजाल । मर ठी भाषा में माया को प्रेम कहते हैं और कपट तो हम कह ही चुके हैं। किसी घोर तपस्वी अथवा अरणक एवं कामदेव श्रावक जैसे को अपने धर्म से डिगाने के लिये देवता पिशाच आदि के रूप में आए और उन्हें भयभीत करने के लिये नाना-प्रकार के झूठे दृश्य उन्होंने दिखाए । वह सब उनकी माया या कपट ही कहा जाएगा। सती सीता का हरण करने के लिये रावण रूप बदलकर आया वह भी कपट था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004006
Book TitleAnand Pravachan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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