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भद्रबाहु - चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
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Acarya Visakhanandi after returning from Cola country with his Samgha comes to Candragupta and considering him of loose conduct does not reciprocate his Namaskāra ( Salutation ).
पिहिवि कवाड़ वसहिहिँ दार हुँ दारुपत्ति सई हत्थे मुंज हिं एतहिं बारह-बरिसाणंतरि णियइ देसि वाहुडिउ सइत्तउ 5 सहुँ संघे गुरु णिसही बंदिय चंदगुत्तिणा पणविय ते मुणि मह अवि महत्वयइँण रक्खिय इय चिंतंतहु तहँ चित्तंतरि तत्थहु चल्लिय रिसिवर जामहि 10 एत्थु महापुरु वसइ नियच्छहु ता अच्छरिङ सचित्ति वहते
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इस हिँ सव्व जि भोयण बारहु । अंतराय मल-दोस ण जुंजहिँ । मुणि विसाणंदी एत्थंतरि । जहिँ गुरु चिरु छंडिउ तहिं पत्तउ । लेविय वासु थक्क विजयंदिय । पडिवंदन तुहु दिति ण बहुगुणि । एण जि कंदमूल - फल- भक्खिय | रयण गया रवि उयउ हंतरि । गुरु-पय भत्तिउ भासिउ तामहिं । एत्थ पारणहुँ विहिवि पह गच्छहु । तासु पुट्ठि ते चल्लि तुरंत ।
घत्ता
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णयरम्म पट्टा चित्ति पहिट्ठा सावयलोयहिँ ते धरिया । बारह - सहसइँ वर भुंजिय रिसिवर पुणि गुहाहिं आणा तुरिया ॥ १९ ॥
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