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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
[१३] Candragupta accepts asceticism by Acārya Bhadra bāhu, Knowing about the coming Twelve-year-famine, Ācārya Bhadrabāhu proceeds towards South India with
12000 saints (Sadhus) including Candragupta.
भद्दबाहु सुयकेवलिसारहु सिस्सु पजायउ णिज्जियमारहु । अण्णहिँ दिणि रिसि-संघ-वरिटुउ भद्दबाहु पुरि चरिय पइट्ठउ । मग्गे जंतिं तिं डिंभेक्कउ दिट्ठउ रोवंतउ पहि थक्कउ।
बा-बा-बा भणेवि जा कंदइ ता णिमित्तु सुयकेवलि विंदइ । 5 भासइ कित्तियाइँ सुपवित्तउ दोदह-दोदह बालिं बुत्तउ।
हुयहु अलाहु आउ सुयकेवलि ___जंपइ संघु णिवेसिवि गयमलि । दोदह-वरिसहु कालु हवेसइ जणणु जि पुत्तहु गासु हडेसइ । जो कुवि मुणिवरु इत्थ रहेसइ तहु व उ-तउ-संजमु णासेसइ । मझु णिमित्तु एम आहासइ दक्खिण-दिसि विहरियइ समासइ। 10 ता सावयलोयहिँ तहु बुत्तउ सामिय अम्हहँ गेहि णिरुत्तउ ।
अस्थि पउर-घय-पय-धण-धण्ण लवण-तिलहँ कुवि संखा गण्ण। बारह-वरिसइँ कित्तियमित्तइँ अम्हइँ तुम्हहँ पय-अणुरत्तइँ । किंपि चिंत मा करहु सचित्तहिँ गमणु म करहु दुकाल-णिमित्तहिं ।
तहँ वि ण भद्दवाहु रिसि थक्कउ जाणतो वयभंगु गुरुक्कउ । 15 थूलभदु-रामिल्लायरियउ थूलायरियउ बि जस विप्फुरियउ ।
ए तिण्णि वि णिय-णिय-गण-जुत्ता सावय-वयणहिँ थक्क णिरुत्ता।
पत्ताबारह-सहस-मुणिहिँ सहिउ भहबाहुरिसि चल्लियउ । जंतउ-जंतउ कयवयदिणहिँ अडविहिँ पत्तु गुणल्लियउ॥१३॥
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