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________________ २७ भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक [ १३ ] . चन्द्रगुप्त द्वारा भद्रबाहु से दीक्षा तथा आगामी द्वादशवर्षीय दुष्काल की जानकारी प्राप्त कर भद्रबाहु का चन्द्रगुप्त आदि १२ सहस्र साधुओं के साथ दक्षिण-भारत की ओर विहार। -और आगे चलकर वह (चन्द्रगुप्त) कामदेव पर विजय प्राप्त कर लेने वाले तथा श्रुतकेवलियों में प्रधान भद्रबाहु का शिष्य बन गया। अन्य किसी एक दिन ऋषियों के संघ में वरिष्ठ ( गुरु-) भद्रबाहु ने चर्या-हेतु नगर में प्रवेश किया। मार्ग में जाते हुए उन मुनिराज ने रास्ते में खड़े रोते हुए एक शिशु को देखा। वह शिशु बाबा-बा-बाबा-बा कह-कहकर रो रहा था। तब निमित्तज्ञान से श्रुतकेवली उन भद्रबाहु ने जान लिया और सुपवित्र उन स्वामी ने कितने ही साधुओं से कहा कि "यह बालक दो दह (१२) दो दह ( १२ ) कह रहा है।" इससे उनकी चर्या में अन्तराय हो गया और गतमल ( निर्दोष ) वे श्रुतकेवली वापिस आये और संघ को बैठाकर कहने लगे-"दोदह कहने से द्वादश वर्ष का अकाल होगा, जिसमें ( अकाल में) पिता अपने पुत्र का भी ग्रास छीन लेगा। जो कोई भी मुनिवर यहाँ रहेगा उसका व्रत, तप एवं संयम नष्ट हो जायगा, ऐसा मेरा निमित्तज्ञान कह रहा है। अतः हम सब इकट्ठे होकर दक्षिण-दिशा में विहार करें।" तब श्रावक लोगों ने उनसे कहा-“हे स्वामिन्, हमारे घर में ठहरिए । हमारे यहाँ प्रचुर घी, दूध, धन एवं धान्य है ही, नमक, तेल को संख्या (मात्रा) भी कौन गिने ? हम लोग जब आपके चरणों में अनुरक्त हैं। तब बारह वर्ष कितने मात्र हैं ? [अर्थात् बारह वर्ष चुटकी बजाते ही निकल जायेंगे। आप अपने चित्त में किसी भी प्रकार की चिन्ता मत कीजिए और केवल दुष्काल के निमित्त से ही यहाँ ( पाटलिपुर ) से गमन मत कीजिए।" श्रावकों द्वारा बार-बार आग्रह किये जाने पर भी दुष्काल में महाव्रतों के अत्यन्त भंग को जानते हुए ऋषिकल्प भद्रबाहु वहाँ रुके नहीं। किन्तु यश से स्फुरायमान स्थूलभद्राचार्य, रामिल्लाचार्य और स्थूलाचार्य, ये तीनों आचार्य अपने-अपने गणों से युक्त ( होकर जैसे ही उन भद्रबाहु के साथ चलने को उद्यत हुए कि ) श्रावकों के अत्यन्त आग्रह से वे वहीं ( पाटलिपुर में ) रुक गये । पत्ता-बारह हजार मुनियों सहित ऋषिकल्प भद्रबाहु दक्षिण की ओर चल दिये । जाते-जाते कतिपय ( कितनेक ) दिनों में वे गुणाश्रित मुनिराज एक अटवी में जा पहुँचे ॥१३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004003
Book TitleBhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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