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भद्रबाहु - चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
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आचार्य भद्रबाहु द्वारा स्वप्नफल- कथन एवं चन्द्रगुप्त को वैराग्य
( ७ ) खद्योतों के देखने का फल यह होगा कि शुभ कर्म को प्रकट करने - वाले आगम के पदों को मुख में धारण करनेवाले वेषी - साधु बहुत कम होंगे । ( ८ ) सरोवर को मध्य में सूखा देखने का फल यह है कि मध्यदेश में धर्म का नाश होगा |
( ९ ) धूम - दर्शन से दुर्जन-जन घर-घर में दोषों को ग्रहण करानेवाली कथाएँ करनेवाले होंगे ।
(१०) सिंहासन पर स्थित वनवरों को देखा — उसका फल यह है कि ( भविष्य में ) अकुलीन राजा होंगे । विशुद्ध कुलवाले लोग उन नीच, कुलीनराजाओं की सेवा करेंगे और उन्हीं की कृपा से अपना उदर भरेंगे ।
( ११ ) जो बड़े-बड़े जंगली उत्कट कुत्तों को सुवर्ण की थाली में खीर खाते देखा है, इसका फल यह होगा कि राजाओं द्वारा कुलिंग ( साधु ) पूजे जावेंगे और लोग उन्हीं के वचनों को यत्नपूर्वक पालेंगे ।
( १२ ) हाथी पर आरूढ़ जो बन्दर को देखा है, उसका फल यह है कि महाऋद्धिवालों (महा-अर्थ - धन और पुरुषार्थवालों ) के द्वारा होन अकुलीन जनों की सेवा की जायगी ।
( १३ ) पुनः कचरा ( कूड़े ) में उत्पन्न जो कमल देखे हैं, उसका फल यह है कि ज्ञानी मुनि परिग्रह सहित होंगे ।
( १४ ) जो मर्यादा त्यागते हुए सागर को देखा है, इसके फलस्वरूप राणा शासक ) लोग अत्यधिक कर (टैक्स) वसूल करेंगे ।
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(१५) बालवृषभों से वाहित जो रथ देखा है, सो डिभ (कुमार) संयम के भार का वहन करेंगे ।
( १६ ) तरुण बैलों पर आरूढ़ क्षत्रियों को देखा, सो क्षत्रिय कुधर्म के अनुरागी बनेंगे ।
घत्ता - इस प्रकार स्वप्नों के फल सुनकर तथा काल की गति ( भविष्य ) पर बार-बार विचार करने से राजा चन्द्रगुप्त के मन में विरक्ति उत्पन्न हो गयी और उसने अपने पुत्र को राज्य का भार देकर दीक्षा ले लो ॥१२॥
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