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भद्रबाहु - चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
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Renunciation by Candragupta on hearing the meaning of the dreams.
खज्जोएँ पुणु किंचि जि आयमु सरु सुक्कउ जं मज्झ पएस हिं धूमेँ दुज्जणयण पुणु घरि-घरि जं सिंहासणि संठिय वणयर 5 कुल - विसुद्ध तहँ सेव करेस हिँ
जं पायसं मुंजंता कुक्कुड तिं कुलिंग रायहिँ पुज्जेव्वा कइ आरूढ दिट्ठ जंहत्थि हिं जं कियार पुंजहि पुणु सररुह
10 जं मज्जाएँ चत्तउ सायरु बाल- बसह णिव्वाहिउ रहवरु तरुण-बलद्दारूढा खत्तिय
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मुह वेसइ पडिय सुहकमु । धम्मु णासु तं मज्झिम देस हिँ । होसहिँ दोसह गहण कथायरि । ति होस हिँ अकुलीण णरेसर | ताहँ पसाएँ उयरु भरेस हिँ । कणयथालि दिट्ठा वणुक्कड । ताहँ वयण जयण पालेव्वा । तिं सेविव्वा हीण महद्धिहिं । तं सपरिग्गह होसहिँ मुणि बुह । तं राणा लेसहि पवरु जि करु | डिंभ बस हिँ संजम भरु | तिं होस हिँ कुधम्म अणुरत्तिय ।
घत्ता
इम सुणिवि भावकालहु जि गइ पुणरवि चित्ति विरति पइ । णिय पुत्तहुँ देष्पिणु रज्जभरु चंदगुत्ति दिक्खिय लइ ||१२||
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