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________________ प्रस्तावना सकोशभृत्यं ससुहृत्पुत्रं सबलवाहनम् । नन्दमुन्मूलयिष्यामि महावायुरिव द्रुमम् ॥ ( स्थविर० ८ २२५ ) चाणक्य को जैन साधुओं की पूर्वोक्त भविष्यवाणी का स्मरण हो आता है । अतः वह किसी सुयोग्य युवक की खोज में पाटलिपुत्र से निकलता है और मयूरपोषकों के एक ग्राम में पहुँचकर वहाँ के एक मुखिया की गर्भवती कन्या को चन्द्रपान का दोहला पूर्ण कराकर उस मुखिया से प्रतिज्ञा कराता है कि उस कन्या से यदि पुत्र उत्पन्न होगा तो वह उस ( चाणक्य ) को भेंट कर देगा । कृतज्ञ मुखिया इस शर्त को तत्काल स्वीकार लेता है | संयोग से मुखिया की उस पुत्री को भी पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है उसका नाम चन्द्रगुप्त रख दिया जाता है । चाणक्य छिपे छिपे उसकी परीक्षा करता रहता है तथा उसमें राजा बनने के सन्तोषजनक लक्षण पाकर वह उस मुखिया को अपनी पूर्व प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाता है और चन्द्रगुप्त को अपने साथ में ले जाकर स्वयं उसे प्रशिक्षित करता है । ६-७ वर्षों के बाद चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त सैन्य संगठन करके मगध पर आक्रमण करते हैं, किन्तु उसमें वे असफल हो जाते हैं । घननन्द द्वारा चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त इसलिए पराजित हो गये थे क्योंकि उन्होंने उग्रवादी सीमान्तवर्ती प्रदेशों को अपने अधिकार में किये बिना ही मगध जैसे सुसंगठित एवं सशक्त राज्य पर आक्रमण किया था। इस प्रसंग में एक मनोरंजक कथा भी उल्लिखित है । तदनुसार, पराजित चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त एक ग्राम में घूम रहे थे । घूमते-घूमते वे एक झोंपड़े के समीप पहुँचे । उस झोंपड़े में गृहस्वामिनी रोटी पकाकर अपने बच्चे को परोस रही थी । वह बच्चा रोटी के बीच का हिस्सा खाकर उसके किनारे फेंक दे रहा था । यह देखकर गृहस्वामिनी ने कहा - " यह बालक तो वैसा ही अनर्थ कर रहा है, जैसा चन्द्रगुप्त ने किया ।" उस बच्चे ने उत्सुकतापूर्वक पूछा कि चन्द्रगुप्त कौन है और उसने क्या अनर्थ किया है ? इसपर गृहस्वामिनी ने कहा - " बच्चे, तू रोटी के किनारेकिनारे छोड़कर केवल बीच-बीच का ही हिस्सा खाये जा रहा है । चन्द्रगुप्त भी राजा बनने का स्वप्न तो देखता है, किन्तु उसे यह भी पता नहीं है कि राजा बनने के लिए सर्वप्रथम सीमान्त प्रदेशों को अपने अधिकार में ले लेना चाहिए । सीमा को अधिकार में किये बिना मध्यभाग को कोई कैसे अपने अधिकार में रख सकता है ? अपनी इसी भूल के कारण वह अभी पराजित हुआ है और आगे भी होता रहेगा ।" " स्थविरावली चरित" में भी इसी से मिलती-जुलती कथा मिलती है । उसके अनुसार - "जिस प्रकार कोई बच्चा अपनी थाली के किनारे के शीतल भाग से Jain Education International २७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004003
Book TitleBhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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