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भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक ___ आवश्यकनियुक्ति चूर्णी के अनुसार चाणक्य का जन्म गोल्ल जनपदान्तर्गत चणयग्राम में हुआ था। उसके पिता का नाम चणक-ब्राह्मण और माता का नाम चणेश्वरी था। वे जैनधर्म के परम भक्त थे। उनके यहां जैन-मुनियों का निवास प्रायः ही होता रहता था। संयोग से उन्हींको उपस्थिति में चाणक्य का जन्म हुआ।
जन्मकाल में ही उसके मुख में एक दांत देखकर जैन-मुनियों ने भविष्यवाणी की कि वह आगे चलकर सम्राट बनेगा। इससे उसके पिता चिन्तित हो उठे। क्योंकि वे उसे जैन-साधु के रूप में देखना चाहते थे। अतः पिता ने उसके उस दांत को तुड़वा दिया। तब साधुओं ने पुनः भविष्यवाणी की कि अब वह स्वयं सम्राट न बनकर किसी दूसरे को सम्राट बनावेगा और उसके माध्यम से वह शासन करेगा।
श्रावक चाणक्य को चतुर्दश विद्याओं (शिक्षादि ६ अंग, ऋग्वेदादि ४ वेद एवं मीमांसा, न्याय, पुराण एवं धर्मशास्त्र ) का अध्ययन कराकर उसके पिता ने एक विद्वान् ब्राह्मण की कृष्णवर्ण वाली यशोमति नाम की कन्या के साथ उसका विवाह करा दिया।
एक बार यशोमति अपने भाई के विवाह में चणय ग्राम जाती है, जहाँ दरिद्रता के कारण वह अपनी ही बहनों एवं भाभियों से अपमानित होती है। इस कारण चाणक्य को भी बड़ा दुःख होता है और उसी समय से वह धनार्जन का दृढ़ निश्चय करता है।
चाणक्य को विश्वस्त सूत्रों से यह विदित होता है कि मगध सम्राट धननन्द प्रत्येक कार्तिक पूर्णमासी के दिन ब्राह्मणों को दान देता है। अतः वह उपयुक्त समय पर धननन्द की दानशाला में जाकर राजा के लिए निर्धारित आसन पर बैठ जाता है और उसे वहां से उठकर मन्त्री द्वारा बतलाये गये दूसरे-दूसरे आसनों पर भी वह (चाणक्य ) स्वयं न बैठकर उन पर अपने दण्ड माला एवं यज्ञोपवीत आदि रख देता है । चाणक्य की इस उद्दण्डता से परिचारक क्रुद्ध होकर उसको दानशाला से निकाल देता है। इस कारण अपमानित होकर वह पुत्र, मित्र एवं ऐश्वर्य सहित धननन्द को जड़मूल से उखाड़ फेंकने की प्रतिज्ञा करता है । यथा
१. आगमोदय समिति बम्बई ( १९१६-१७ ) द्वारा प्रकाशित तथा दे०
स्थविरावलीचरित (याँकोबी द्वारा सम्पादित, कलकत्ता १९३२ ई.) अष्टम सर्ग।
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