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________________ भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक बृहत्कथाकोषकार ( ९३१ ई.) के अनुसार चाणक्य पाटलिपुत्र निवासी कपिल ब्राह्मण एवं देविला ब्राह्मणी का पुत्र था। शीघ्र ही वह वेद-वेदांग में पारंगत हो गया। युवावस्था को प्राप्त होते ही उसका विवाह यशोमति नाम की एक ब्राह्मणी कन्या के साथ हो गया। चाणक्य की बुआ बन्धुमती का विवाह नन्दनरेश के कावी नामक एक मन्त्री के साथ सम्पन्न हुआ। __अन्य किसी समय प्रत्यन्तवासी किसी शत्रुराजा ने मगध पर आक्रमण कर दिया तो अपने मन्त्रियों की सलाह से नन्दनरेश के आदेशानुसार मन्त्री कावी वे कोषागार से प्रचुर मात्रा में धन देकर शत्रु को शान्तकर वापिस लौटा दिया । बाद में नन्द ने अपना कोषागार खाली देखकर तथा कुछ चुगलखोरों के बहकावे में आकर कावी को सपरिवार अन्धकूप में डाल दिया और उसे प्रतिदिन के भोजन के रूप में सकोरा भर सत्तू एवं पानी देने लगा। भूख के कारण परिवार के लोग तो मर गये किन्तु कावी किसी प्रकार जीवित रहा। तीन वर्ष बाद उसी शत्रु ने मगध पर पुनः आक्रमण किया। तब नन्द ने कावी से राजसभा में क्षमायाचना कर शत्रु को पुनः शान्त करने का अनुरोध किया। कावी ने पुनः राजकोष से धन देकर शत्रु को सन्तुष्ट कर वापिस लौटा दिया। एक दिन कावी ने किसी को दर्भसूची खोदते हुए देखकर उससे उसका कारण पूछा । तब उसने अपना नाम चाणक्य बतलाकर कहा कि दर्भसूची ने मेरे पैर में गड़कर घाव कर दिया है, अतः उन्हें जड़मूल से नष्ट कर रहा हूँ। कावी उसे दृढनिश्चयी एवं चतुर जानकर बड़ा प्रसन्न हआ तथा उसे नन्दनरेश से अपना बदला लेने का उत्तम माध्यम सोचकर उसने उसे अपना मित्र बना लिया। एक दिन उस कावी मन्त्री ने राजसभा की एक दीवाल पर एक श्लोक लिख दिमा। चाणक्य ने भी उसीके नोचे वही श्लोक लिख दिया। इसका तात्पर्य था कि कावी और चाणक्य दोनों एक ही विचारधारा के व्यक्ति हैं। एक दिन चाणक्य की पत्नी ने चाणक्य से कहा कि राजा नन्द ब्राह्मणों को कपिला गाय भेंट करता है, अतः जाकर ले आना चाहिए। चाणक्य गायप्राप्ति के लोभ में नन्द की राज्यसभा में पहुँचकर अग्रासन पर बैठ जाता है तथा अन्य आसनों पर अपने दर्भासन, कदम्बक, कुण्डिका आदि वस्तुएँ रख देता है। अग्रासन पर एक कुरूप व्यक्ति को बैठा देखकर राजा नन्द को क्रोध श्रा जाता है और उसे वह अर्धचन्द्र दिलवाकर राज्यसभा से बाहर निकलवा देता है। १. बृहत्कथाकोष कथा सं. १४३, मूलकथा इसी पुस्तक को परिशिष्ट में देखें। २. वही-श्लोक संख्या ३७ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004003
Book TitleBhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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