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________________ २० भद्रबाहु- चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक राज्यारम्भकाल ई. पू. ४६७ के आस-पास सिद्ध होता है, जिसमें अन्तिम नन्द राजा धननन्द का अन्तिम समय ई. पू. ४६७-९५ = ३७२ ई. पू. के लगभग निश्चित होता है । मौर्यवंश एवं उसका प्रथम सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्यवंश के उद्भव के सम्बन्ध में अन्वेषक विद्वानों ने विविध प्रकार के विचार व्यक्त किये हैं । एक पक्ष के विद्वानों ने विष्णुपुराण एवं मुद्राराक्षस ( के उपोद्घात ) के आधार पर उसे राजा नन्द की मुरा नाम की शूद्रा दासी या वृषल ( धर्मघाती जाति की ) पत्नी से उत्पन्न विद्वानों ने कथासरित्सागर, कौटिल्य अर्थशास्त्र एवं पर उसे क्षत्रिय माना है । भारतीय इतिहास में इस दूसरे मत का ही प्राबल्य है क्योंकि अनेक सुप्रसिद्ध इतिहासकारों वे इसका समर्थन किया है । कहा है । दूसरे पक्ष के बौद्ध साहित्य के आधार ४ श्रमणेतर साहित्य में मौर्यवंश एवं उनके राज्य - मगध के विषय में प्रशंसामूलक वर्णन नहीं मिलता। उसमें मगध देश को कीकट तथा वहाँ के निवासियों को व्रात्य कहा गया है । विद्वानों ने इन व्रात्यों को अनार्य मान कर भी उन्हें अदम्य साहसी एवं दृढ़ निश्चयी बताया है । इसके कारणों की खोज करते हुए मान्य इतिहासकार डॉ० बी. पी. सिन्हा लिखते हैं " - " सम्पूर्ण वैदिकसाहित्य में मगध के प्रति जो विरोध की भावना स्पष्टतया व्यक्त है, इससे यह अनुमान तर्कसंगत है कि उस समय ( प्राचीन काल में ) मगध आर्येतर निवासियों का सुदृढ़ दुर्ग रहा होगा और उसने रूढ़िगत ब्राह्मण ढांचे में विलीन होना अस्वीकार किया होगा |... मगध प्रायः सबसे पीछे ब्राह्मण सभ्यता के अन्तर्गत आने वाले देशों से से था । व्रात्य आर्य रहे हों या नहीं, मगघवासियों में वे पूर्णतया मिल गये थे और इसलिए वे ब्रह्मावर्त के आर्यों द्वारा हेय देखे जाते थे । यह जातीय विभिन्नता ही शायद मगध के व्यापक धार्मिक और राजनैतिक क्रान्तियों का कारण रही ।" मौर्यवंश की जाति कोई भी रही हो, किन्तु यह तथ्य है कि उसके राजाओं ने अपने पुरुषार्थ- पराक्रम से न केवल मगध को अपितु भारत को विश्व के साम्राज्यों में अनोखा एवं गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कराया । १. वृषो हि भगवान् धर्मो यस्तस्य कुरुते ह्यलम् । महाभारत १२।९०।१५ २. दे० भागवतपुराण एवं वायुपुराण में वर्णित मगधदेश वर्णन | ३-५. दे० डॉ. डॉ. पी. सिन्हा - मगध का राजनैतिक इतिहास, पू. ३-४ | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004003
Book TitleBhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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