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________________ प्रस्तावना Kshatriya chiefs founding popular religious sects which menaced the vedic religion and Sūdra Leaders establishing a big empire in Aryāvarta on the ruins of kshatriya kingdoms" __ जैन साहित्य के आधार पर मन्त्रीपद वंशानुगत था। नन्दवंश के राज्यकाल में इसके अनेक प्रमाण उपलब्ध है। इस कारण उनके राज्यकाल में जैनधर्म को पर्याप्त प्रतिष्ठा मिली। इस तथ्य का समर्थन महाकवि विशाखकृत मुद्राराक्षस नाटक से भी होता है, जिसमें एक पात्र स्पष्टरूपेण कहता है कि नन्दवंश के राज्यकाल में जैन अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उसके अनुसार चाणक्य ने भी जैनों पर विश्वास कर उन्हें विश्वस्त पदों पर नियुक्त किया था। नन्दराजाओं का काल इतिहासकारों ने भ० महावीर का निर्वाणकाल ५२७ ई० पू० माना है। प्राचीन जैन-सन्दर्भो के अनुसार महावीर-निर्वाण के १५५ वर्ष बाद जो कि नन्दराजाओं का राज्यकाल है, चन्द्रगुप्त मौर्य ( प्रथम ) ने अन्तिम धननन्द नरेश से मगध का साम्राज्य प्राप्त किया था, अर्थात् ५२७-१५५ = ३७२ ई० पू० में वह मगध का अधिपति बना और यही काल था नन्दवंश के अन्तिम नरेश का समाप्तिकाल भी। वस्तुतः नन्द नरेशों की काल-गणना अत्यन्त जटिल है। वैदिक-परम्परा में जिस प्रकार पारस्परिक मेल नहीं बैठता, उसी प्रकार जैन-परम्परा में भी पारस्परिक मेल नहीं बैठता। आचार्य जिनसेन एवं मेरुतुंग ने चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण वीर-निर्वाण के २१५ वर्ष बाद माना है, जबकि आचार्य हेमचन्द्र ने १५५ वर्ष बाद । इन दोनों मान्यताओं में ६० वर्ष का अन्तर है। यदि उक्त १५५ में से ६० वर्ष, जो कि वीर निर्वाण के बाद पालकवंशी राजाओं का राज्यकाल है, निकाल दिये जाएँ, तो हेमचन्द्र के अनुसार नन्दों का राज्यकाल ९५ वर्ष सिद्ध होता है, जो वैदिक पुराणों के साथ भी ५ वर्षों के अन्तर को छोड़कर लगभग ठीक बैठ जाता है और इस प्रकार नन्दों का १. Smith-Oxford History of India P. 75. २. पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री- जैन साहित्य का इतिहासः पूर्वपीठिका पृ० ३३६ ३-४. वही पृ० ३१२ । ५. दे. पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री जैन साहित्य का इतिहास-पूर्वपीठिका पृ. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004003
Book TitleBhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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