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प्रस्तावना
२. तद्विषयक पूर्ववर्ती कथानकों में अनुपलब्ध कल्कि-राजाऔं की शासनप्रणाली पर प्रकाश एवं षट्काल, श्रुतपंचमो-परिम्भ का सरल शैली में वर्णन ।
३. अशोक के पुत्र का नकुल के रूप में उल्लेख, जब कि अन्यत्र उसका नाम कुणाल एबं सुयश के रूप में उपलब्ध है।
४. पाटलिपुत्र का पाडलिपुर के नाम से उल्लेख । ५. सम्राट चन्द्रगुप्त के १६ स्वप्नों तथा उनके फल का वर्णन ।
६. मौर्यवंशी नरेशों की ऐतिहासिक वंशावली का प्रस्तुतीकरण ( विशेष के लिए दे. इसी ग्रन्थ की प. सं. १०२ की टिप्पणी) । रामचन्द्र मुमुक्ष कृत पुण्याश्रवकथाकोषम् में भी यह वंशावली उपलब्ध है। अन्तर यह है कि उन्होंने ( मुमुक्षु ने ) द्वितीय चन्द्रगुप्त को "सम्प्रति" विशेषण से संयुक्तकर उसके पुत्रसिंहसेन का भी उल्लेख किया है। ___७. चन्द्रगुप्त (प्रथम ) एवं विशाखाचार्य की पृथक्-पृथक् रूप में मान्यता । - ८. राजा नन्द के शत्रु को पच्चंतवासि (प्रत्यन्तवासी) कहकर सीमान्तवर्ती राजा पुरु या पर्वतक की ओर संकेत ।
९. दुष्काल के समय आचार्य रम्मिल, स्थूलिभद्र एवं स्थूलाचार्य के पाटलिपुत्र में निवास का वर्णन।
१०. भद्रबाहु का ससंघ मगध से दक्षिण की ओर बिहार । वे मुनि चन्द्रगुप्त के साथ अटवी में रहे और विशाख के नेतृत्व में अपने समस्त संघ को चोल देश भेज दिया।
११. गुरु भद्रबाहु के आदेश से मुनि चन्द्रगुप्त द्वारा कान्तार-चर्या ।
१२. भद्रबाहु के स्वर्गारोहण के बाद चन्द्रगुप्त (प्रथम) ने उनके कलेवर को एक शिलातल पर रख दिया तथा एक भारी दोवाल में उनके चरणों को अंकित कर दिया। अपने हृदय में भी उन्हें अंकित कर लिया।
१३. संघभेद सम्बन्धी तीन प्रमुख सिद्धान्तों-(नग्नता-विरोध, तथा स्त्रीमुक्ति एवं केवलि-कवलाहार का समर्थन ) के स्पष्ट उल्लेख ।
१४. बलभीपुर को रानी स्वामिनी एवं करहाटपुर की रानी जक्खिला की विचारधाराएँ एवं उनका श्वेताम्बरमत एवं बलिय-संघ से सम्बन्ध का वर्णन । महाकवि रइधृ : व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व
प्रस्तुत भद्रबाहु चाणक्य - चन्द्रगुप्त कथानक के प्रणेता महाकवि रइधू [वि. सं. १४४०-१५३० ] अपभ्रंश- साहित्य के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं । विपुल साहित्य-रचनाओं की दृष्टि से उनकी तुलना में ठहरने वाले अन्य प्रतिस्पर्धी कवि या साहित्यकार के अस्तित्व की सम्भावना अपभ्रंश-साहित्य में नहीं की जा
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