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भद्रबाहु - चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक
हाथ पर वस्त्र लटकाकर चलता था । हरिषेण के परवर्ती प्रायः सभी कवियों ने इस घटना का उल्लेख किया है । श्वेताम्बर - मत एवं यापनीय संघ की उत्पत्ति के विषय में भी इन कवियों ने स्वरुचि के अनुसार होनाधिक मात्रा में स्पष्ट वर्णन किया है ।
[६] चन्द्रगुप्त के १६ स्वप्नों एवं जैनदीक्षा के बाद उनकी दक्षिणाटवी में कान्तार- चर्या का उल्लेख हरिषेण ने नहीं किया, किन्तु पश्चाद्वर्ती प्रायः सभी कवियों ने किया । प्रतीत होता है कि कथानक को अधिक रोचक, मार्मिक एवं सुरुचिसम्पन्न बनाने हेतु ही इन कवियों ने इन घटनाओं का समावेश किया होगा ।
[७] अपभ्रंश भाषा में भद्रबाहुचरित श्रीचन्द्रकृत कथाकोष में उपलब्ध है, जो प्रकाशित हो चुका है और उसके बाद तद्विषयक दूसरी रचना महाकवि रद्दधू द्वारा लिखित है, जो अब प्रकाशित हो रही है । इसका संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है:
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महाकवि रद्दधू कृत भद्रबाहु - चाणक्य-चन्द्रगुप्त-कथानक
रचना-परिचय
प्रस्तुत कृति महाकवि रघू की अद्यावधि अज्ञात एवं अप्रकाशित लघुकृति है, जो सम्पादक को ऐ. प. दि. जै० सरस्वती भवन व्यावर ( राजस्थान ) के शास्त्र भण्डार से उपलब्ध हुई थी । ऐतिहासिक दृष्टि से वह अपभ्रंश भाषा की एक महत्त्वपूर्ण कृति है । इसका मूलस्रोत पूर्ववर्त्ती - साहित्य विशेषतया रामचन्द्र मुमुक्षु कृत पुण्यश्रवकथा कोषम् है तथा कहीं-कहीं उस पर हरिषेण कृत बृहत्कथाकोष का प्रभाव भी परिलक्षित होता है । उक्त रचना में भद्रबाहु, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, नन्द एवं मौर्यवंश, प्रत्यन्त राजा ( पर्वतक ? ) के विषय में तो संक्षिप्त वर्णन है ही, इनके साथ-साथ उसकी जो सबसे बड़ी विशेषता है, वह यह कि उसमें श्रुतपंचमी पर्वारम्भ, कल्कि अवतार एवं षट्कालवर्णन के संक्षिप्त प्रकरण भी उपलब्ध हैं, जो अन्य भद्रबाहु चाणक्य चन्द्रगुप्त कथानकों में दृष्टिगोचर नहीं होते ।
उक्त रचना में कुल २८ कडवक हैं । उनमें प्राप्त कथावस्तु प्रस्तुत कृति के मूल कड़वकों के साथ हिन्दी एवं अंग्रेजी शीर्षकों से स्पष्ट है, अतः विस्तार भय से उसे यहाँ न देकर उसके कुछ तथ्यों को ही यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है, जो निम्न प्रकार हैं :
१. पूर्ववर्ती साहित्य से भद्रबाहु, चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त आदि सम्बन्धी सन्दर्भ-सामग्री लेकर अपभ्रंश भाषा में उनका प्रबन्ध-शैली में प्रस्तुतीकरण ।
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