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________________ भद्रबाहु-चाणक्य-चन्द्रगुप्त कथानक के साथ अपना संघ दक्षिण देश भेज दिया तथा स्वयं अकेले भाद्रपद देश जाकर समाधि ग्रहण कर ली। (ग) अन्य कथाकारों के अनुसार यह दुष्काल मगध में पड़ा और वहां के राजा चन्द्र गुप्त को जैन दीक्षा देकर उनके साथ भद्रबाहु संघ-सहित दक्षिण देश चले गये । रुग्ण हो जाने के कारण वे स्वयं तो मुनि चन्द्रगुप्त के साथ एक गुहाटवी में रहे किन्तु विशाखाचार्य के नेतृत्व में अपने संघ को उन्होंने चोल, तमिल अथवा पुन्नाट देश की ओर भेज दिया। (घ) हरिषेण के उज्जयिनी विषयक दुष्काल के उल्लेख का आधार क्या था, इसकी जानकारी तो नहीं मिलती, किन्तु मगध के दुष्काल का समर्थन अर्धमागधी आगम के टीका-साहित्य से भी होता है। हरिषेण के अतिरिक्त प्रायः सभी कथाकारों ने मगध के दुष्काल की चर्चा की है। हरिषेण के एक अन्य उल्लेख से यह भी स्पष्ट है कि उज्जयिनी के साथ-साथ सिन्ध-देश भी दुष्काल की चपेट में था, इसीलिए उनके अनुसार आचार्य रमिल्ल, स्थूलिभद्र एवं स्थूलाचार्य को वहां दुष्कालगत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। (ङ) कुछ लोगों को इसमें भ्रम उत्पन्न हो सकता है कि दुष्काल वस्तुतः पड़ा कहाँ ? वह मगध में पड़ा था अथवा उज्जयिनी में पड़ा था या सिन्ध-देश में ? किन्तु यदि गम्भीरता से विचार किया जाय तो यह भ्रम स्वतः दूर हो जायगा। मेरे दृष्टिकोण से यह दुष्काल किसी एक प्रदेश में सीमित नहीं था बल्कि तत्कालीन उत्तर भारत का अधिकांश भाग उसकी चपेट में था किन्तु कवियों ने अनुश्रुतियों के आधार पर जो समझा या अनुभव किया अथवा जो कवि जिस प्रदेश का निवासी अथवा उससे सुपरिचित था, उसने उस प्रदेश के दुष्काल की चर्चा की है । अतः आवश्यकता है, उनके उल्लेखों के समन्वय की और उससे यही विदित होता है, उत्तर भारत विशेषतया मगध, उज्जयिनी एवं सिन्धदेश दुष्काल-पीड़ित था। (च) यह बहुत सम्भव है कि आचार्य भद्रबाहु अपने विहार के क्रम में मगध से दुष्काल प्रारम्भ होने के कुछ दिन पूर्व चले हो और उच्छ्रकल्प १. वर्तमान में यह स्थान इलाहाबाद-कटनी रेल मार्ग पर "उचेहरा" के नाम से प्रसिद्ध है । यह एक छोटा-सा ग्राम है। इतिहासकारों की मान्यता है कि यहां पर पूर्वकाल में कभी परिवाजों का साम्राज्य था। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004003
Book TitleBhadrabahu Chanakya Chandragupt Kathanak evam Raja Kalki Varnan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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