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टिप्पणियां
१०५ २३३१. सोरठि ( सौराष्ट्र, दक्षिण काठियावाड़)-प्राचीनकाल में जिसकी राजधानी गिरिनगर (गिरनार ) थी। प्राचीन सौराष्ट्र को आजकल गुजरात का एक अंग बना दिया गया है।
सौराष्ट्र के जूनागढ़ नगर में मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त (प्रथम) ने अपने प्रान्तीय शासक वैश्य पुष्यगत की देखरेख में आसपास के प्रदेश में सिंचाई करते हेतु एक पर्वतीय नदी को बांधकर सुदर्शन नामक सुन्दर झील का निर्माण कराया था। आगे चलकर सम्राट अशोक के एक प्रान्तीय यवन-शासक तुषास्फ ने उससे नहर निकलवायी थीं। सन् १५० ई. में ऊर्जयन्त पर्वत से निकलने वाली स्वर्णसिक्ता एवं पलाशिनी नामकी नदियों में भयानक बाढ़ आ जाने के कारण जब उस झील का बांध टूट गया और प्रजाजनों में हाहाकार मच गया तब राजा रुद्रदामन ने राज्यकोष की ओर से उसका जीर्णोद्धार कराया था, किन्तु स्कन्दगुप्त के शासनकाल में अतिवृष्टि के कारण वह बांध पुनः टूट गया। अतः जनता का घोर कष्ट देखकर स्कन्दगुप्त ने ४५६ ईस्वी के आसपास उसका पुननिर्माण कराया था।
जैन-साहित्य में सौराष्ट्र का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि जैनियों के २२वें तीर्थकर नेमिनाथ को गिरनार पर्वत पर निर्वाण-पद की प्राप्ति हुई थी। अनेक जैन कथानकों की घटनाओं का सम्बन्ध सौराष्ट्र से पाया जाता है ।
२३।१ वलहीपुर ( वलभीपुर)-गुजरात का एक प्रसिद्ध नगर, जहां अर्धमागधी आगम-साहित्य के संकलन एवं सम्पादन हेतु ईस्वी की ५वीं सदी के आसपास देवद्धिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में तृतीय एवं अन्तिम संगीति हुई थी।
२३३१० करहाडपुर-सम्भवतः वर्तमान महाराष्ट्र का करड नामक शहर ।
२४.१ णिग्गंथ (निर्ग्रन्थ)-कवि का अभिप्राय यहाँ यापनीय-संघ के साधुओं से है । सामान्यतया यह दिगम्बरत्व एवं श्वेताम्बरत्व का मिश्रित रूप है ।
२४.३ वलियसंघ-यापनीय संघ । इसे मध्यममार्गीय माना जा सकता है । यह संघ यद्यपि नग्नता का पक्षपाती था किन्तु कुछ श्वेताम्बर जैनागों को भी प्रामाणिक मानता था। (विशेष के लिए दे० भगवती-आराधना की अपराजित सूरिकृत सं० टी० )। ___ २४।६ पुप्फयंत-भुयवली (पुष्पदन्त-भूतबलि )- आचार्य विशाखनन्दी की परम्परा के आचार्य घरसेन के साक्षात् शिष्य, जिन्होंने श्रुतांगों को लिखा।
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