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३०-३१
( १३ ) १३. चन्द्रगुप्त द्वारा भद्रबाहु से दीक्षा तथा आगामी द्वादशवर्षीय दुष्काल
को जानकारी प्राप्त कर भद्रबाहु का चन्द्रगुप्त आदि १२ सहस्र साधुओं के साथ दक्षिण-भारत को ओर विहार ।
२६-२७ १४. आकाशवाणी द्वारा अपनी आयु अल्प जानकर भद्रबाहु विशाखनन्दी
के नेतृत्व में साधुसंघ को चोल-देश को ओर भेज देते हैं। चन्द्रगुप्त गुरुसेवा के निमित्त वहीं रह जाता है । भद्रबाहु उसे कान्तार-चर्या का आदेश देते हैं।
२८-२९ १५. कान्तार-चर्या में सिद्धान्त-विरुद्ध साधन-सामग्री देखकर चन्द्रगुप्त
मुनि को लगातार अन्तराय होता रहता है, किन्तु चौथे दिन उन्हें
निर्दोष आहार प्राप्त हो जाता है । १६. आचार्य भद्रबाहु का स्वर्गारोहण । विशाखनन्दी ससंघ चोल देश पहुँचते हैं।
३२-३३ १७. पाटलिपुर के द्वादशवर्षीय दुष्काल का हृदय-विदारक वर्णन। ३४-३५ १८. दुष्काल के समय पाटलिपुर के श्रावकों की मनोदशा एवं साधुओं के शिथिलाचार की झांकी।
३६-३७ १९. विशाखनन्दी संघ सहित चोल-देश से लौटकर चन्द्रगुप्त के पास
लौटते हैं किन्तु उसे शिथिलाचारी समझकर वे उसके नमस्कार का प्रत्युत्तर भी नहीं देते।
३८-३९ २०. चन्द्रगुप्त मुनि के अनुरोध से आचार्य विशाखनन्दी भी कान्तारचर्या
करते हैं और उसे चन्द्रगुप्त की तपस्या का प्रभाव जानकर उनके प्रति उत्पन्न अपने सन्देह को दूर कर उनके साथ हो पाटलिपुर की ओर प्रस्थान करते हैं।
४०-४१ २१. शिथिलाचारी साधुओं द्वारा स्थूलाचार्य की हत्या । स्थूलाचार्य
मरणोपरान्त व्यन्तर-देव-योनि में उत्पन्न होकर हत्यारे साधुओं पर उपसर्ग करते हैं।
४२-४३ २२. दुष्ट साधुओं की प्रार्थना सुनते ही व्यन्तरदेव उन्हें दर्शन देकर अपना
अनुयायो बनने तथा सचेलकता, स्त्रीमुक्ति एवं केवली-कवलाहार के प्रचार का आदेश देता है। साधु-समूह उसे स्वीकार कर स्वामिनी नाम की एक राजकुमारी को प्रशिक्षित करते हैं।
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