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________________ १७८ श्रावकधर्मप्रदीप ज्ञान से उत्तम विचार बनते हैं, उज्ज्वल हृदय बनता है, वाणी में मिठास आती है और कर्तव्य ऊँचे होते हैं। अतः श्राद्धों का अर्थात् सम्यग्दृष्टि श्रद्धावान् गृहस्थों का सन्मार्ग से कदाचित् पतन न हो जाय इसके लिए सच्चे शास्त्रों का पठन-पाठन आवश्यक है। स्वाध्याय करनेवाला ज्ञानी इस लोक में भी परम सुखी और सन्तोषी होता है और परलोक की उज्ज्वलता तो वह साधता ही है। स्वाध्याय सदा उत्तम जिन-प्रतिपादित शास्त्रों का हो। राग-द्वेष वर्द्धक विकथाकथक ग्रन्थों का पढ़ना स्वाध्याय नहीं है। वह तो कुशिक्षादायक दुःश्रुतिनामा महान् पापदायक अनर्थदण्ड है, अतः उसे त्यागकर सच्चे शास्त्रों का विधिपूर्वक स्वाध्याय करना चाहिए।१३५। प्रथमानुयोगपठनम् - _ (अनुष्टुप्) कौ त्रिषष्टिशलाकादिपुरुषाणां सुधर्मिणाम् । चरित्रं प्रथमं पाठ्यं शान्तिदं बोधदं सदा ।।१३६।। तच्चरित्रप्रपाठेन यद्यदाचरितं हितैः। तत्तज्ज्ञानं भवेत् तस्य तथा स्यादशुभेऽरतिः ।।१३७।। कावित्यादिः- चतुर्वनुयोगेषु मध्ये प्रथमं किं पाठ्यमिति प्रश्ने सति समाधीयते आचायैर्यत् त्रिषष्टिसंख्याप्रमाणशलाकापुरुषाणां-चतुर्विंशतितीर्थकराणांद्वादशचक्रवर्तिनां नवनवसंख्याप्रमाणनारायणप्रतिनारायणबलदेवानां जिनधर्मानुयायिनां शिक्षाप्रदं पापापहं पुण्यदं चरित्रं सर्वप्रथममेव सुपाठ्यम् । यतः हितैः हितकारकैः यद्यदाचरितं तेन तस्य श्रावकस्य शुभे रतिः सञ्जायतेऽशुभे चारतिश्चेति। तदनन्तरमेवानुयोगान्तरं पाठ्यम् । १३६।१३७। जैनागम चार अनुयोगों में विभाजित किया गया है-(१) प्रथमानुयोग, (२) करणानुयोग, (३) चरणानुयोग और (४) द्रव्यानुयोग। जैनाचारके प्रतिपालक श्री चौबीसों तीर्थङ्कर भगवान तथा बारह चक्रवर्ती, नव नारायण, नव प्रतिनारायण तथा नव बलभद्र इस प्रकार ६३ शलाका पुरुषों के पुण्य चरित्र का जिनमें वर्णन है वे शास्त्र प्रथमानुयोग हैं। इनका पठन-पाठन सर्वप्रथम करना चाहिये। जिनागम को गहराई से न जानने और न समझनेवाले लोग भी उक्त पुण्य पुरुषों के सदाचारपूर्ण चरित्र से प्रभावित होकर सदाचारी बन जाते हैं, उनसे शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004002
Book TitleShravak Dharm Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaganmohanlal Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1997
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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