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नैष्ठिकाचार
१४१ के सङ्गम के सुख स्वाद में यह भूल जाते हैं कि यह क्षणिक सुख हमारे ही शक्ति ह्रास का मूल हेतु है और अपने विनाश में ही सुख का स्वप्न देख रहे हैं। कालिदास कवि की कथा है कि वह वृक्ष की जिस डाली पर बैठा था उसी को जड़ से काट रहा था और प्रसन्न हो रहा था, ऐसे ही ये मोही प्राणी जिस शरीर की डाल पर बैठे हैं और जिसके आधार पर उनका जीवन है उस शरीर की जड़भूत स्ववीर्य और रज का विनाश कर प्रसन्न होते हैं और इतने पर भी कभी अपनी हानि का विचार तक नहीं करते। ऐसे मोही प्राणी के लिए स्वात्महित की वार्ता बहुत दूर है। ___काम की वेदना ही उन्हें इस मूर्खता पूर्ण कार्य के लिए बाधित करती है। यह वेदना कर्मोदय जनित है। मोह कर्म के उदय से संसार के प्राणिमात्र इससे पीड़ित हैं। कर्मोदय जनित क्रिया नियम से कर्मबन्ध का हेतु है। कर्मबन्ध ही संसार के दुःखों का और परम्परा का मूल है। पारमार्थिक दृष्टि से तो यह वस्तु का स्वरूप है जो निःसंदेह पाप है। लौकिकदृष्टि से भी यदि इस पर विचार किया जाय तो यह महापाप है। कोई भी उत्तम नागरिक इस क्रिया को स्पष्ट रीति से लोगों के प्रत्यक्ष में नहीं कर सकता। ऐसा करना निर्लज्जता होगी। जिस काम को करने में साधारण जन भी लज्जा का अनुभव करे वह क्रिया उपादेय कैसे मानी जाय। उत्तम, मध्यम या साधारण जनों को छोड़ दीजिए, परस्त्रीसंगम करनेवाले धूर्त और वेश्या-संगम करनेवाले महापापी भी तथा स्वयं व्यभिचार से पेशा करनेवाली वेश्याएँ भी इसे गुप्तरूप से ही एकान्त में करते हैं, प्रत्यक्षरूपेण इसे करने में उन्हें भी अत्यन्त लज्जा का अनुभव होता है। सन्तानोत्पत्ति काम के ही फल हैं ऐसा जानते हुए भी सभी जन सन्तान की इच्छा करते हुए, उसमें सोत्साह होते हुए
और संतान होने पर उत्सव मनाते हुए भी काम भोग की क्रिया को प्रच्छन्न ही करते हैं। जिसे करने में लज्जा आवे, जिसकी चर्चा दूसरे से करने में लज्जा आवे वह सुनिश्चित पाप है ऐसा लौकिक जने भी मानते हैं। कामभोग सन्तान का हेतु है और संतान-परम्परा ही संसार है तथा संसार प्राणियों के लिए दुःख का हेतु है इस प्रकार दुख का हेतुभूत कामभोग ही सर्वथा त्याज्य है। ऐसा जानकर जो ज्ञानी पुरुष स्वस्त्री का भी परित्याग कर स्वात्मा में ही रमण करते हैं वे जीव धन्य हैं। ऐसे महापुरुष परिनिर्वाण को प्राप्त हो स्वात्मोत्थ अनंत सुख को भोगते हैं।
जो निर्बल पुरुष कायरता के कारण अपनी मानसिक दुर्बलता पर विजय नहीं पा सकते और कामाग्नि द्वारा जले हुए स्त्री परिग्रह की इच्छा करते हैं उन्हें परवनिता का
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