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________________ श्री सुविधि जिन स्तवन ८१ ग्रहण करा दिया जाता है तब वह गाय शब्द को सुनकर गाय अर्थका ज्ञान कर लेता है । अर्थ सामान्य और विशेषरूप होता है अथवा द्रव्य और पर्यायरूप होता है । सामान्य एक होता है और विशेष अनेक होते हैं । सब वृक्षों में रहनेवाला वृक्षत्व सामान्य एक है और आम, नीम, अनार, शिंशपा आदि वृक्ष विशेष अनेक हैं । जब वृक्षत्व सामान्यकी दृष्टिसे बिचार किया जाता है तब वृक्ष पदका वाच्य एक होता है और जब वृक्ष विशेष आम, नीम आदिको दृष्टिसे विचार किया जाता है तब वृक्ष पदका वाच्य अनेक होता है । जब व्याकरणको दृष्टि से 'वृक्ष: ' ऐसा एकवचनान्त वृक्ष शब्दका प्रयोग किया जाता है तब उसका वाच्य एक वृक्ष होता है और जब 'वृक्षा:' ऐसा बहुवचनान्त वृक्ष शब्दका प्रयोग किया जाता है तब वृक्ष शब्दके वाच्य अनेक वृक्ष होते हैं । इसी प्रकार द्रव्य सामान्यरूप है और पर्याय विशेषरूप है । जब कोई पद किसी द्रव्यका कथन करता है तब उसका वाच्य एक होता है और जब वही पद पर्यायों का कथन करता है तब उसका वाच्य अनेक होता है । मृद्रव्य द्रव्यकी दृष्टिसे एक है और घटादि पर्यायोंकी दृष्टिसे अनेक है । स्वर्णद्रव्य द्रव्यकी दृष्टिसे एक है और हार, कटक, कुण्डल आदि पर्यायोंकी दृष्टिसे अनेक है । इसी प्रकार जोवादि द्रव्यों में भी एक और अनेक वाच्यकी व्यवस्था समझ लेना चाहिए | इस कथन से यह सिद्ध होता है कि वृक्षादि पदका वाच्य एक और अनेक दोनों होते हैं । एकत्व और अनेकत्व ये दोनों धर्म परस्परमें निरपेक्ष नहीं हैं, किन्तु सापेक्ष हैं । द्रव्यकी दृष्टिसे वस्तु एक है और पर्यायकी दृष्टिसे अनेक है । सामान्य को दृष्टि से वस्तु एक है और विशेषकी दृष्टिसे अनेक है । अतः दोनों धर्मोका एक ही वस्तुमें सद्भाव पाया जाता है, इसमें कोई विरोध नहीं हैं । जब कोई वक्ता दोनों धर्मोंमेंसे किसी एक धर्मका प्रतिपादन करता है। उस समय भी वह दूसरे धर्मकी आकांक्षा रखता है । उसकी आकांक्षाका बोध 'स्यात् ' शब्द से होता है । वह कभी कहता है - 'स्यादेकम्' और कभी कहता है'स्यादनेकम्' । वस्तु कथंचित् एक है और कथंचित् अनेक है । एकत्वके कथन के समय अनेकत्वकी अपेक्षा रहती है और अनेकत्वके कथन के समय एकत्वकी अपेक्षा रहती है । यही स्याद्वाद है । स्याद्वादमें जो 'स्यात्' शब्द है वह 'अस्' धातुसे विधिलिंग में निष्पन्न क्रियापद नहीं है, किन्तु वह तिङन्तप्रतिरूपक निपात है । 'हि', 'च', 'एवं', 'स्यात्' इत्यादि शब्द निपात कहलाते हैं । निपात शब्द अव्यय के ही विशेषरूप होते हैं । व्याकरणमें स्यात् शब्दको निपात संज्ञक अव्यय कहा गया है । जो शब्द सदा एकसा रहता है वह अव्यय कहलाता है । ६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004001
Book TitleSwayambhustotra Tattvapradipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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