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मेरी जीवनगाथा
परन्तु मूर्खतावश कभी-कभी गलती कर बैठता था । फल उसका यह हुआ कि आप विद्यालयको छोड़ कर इलाहाबाद चले गये। उनके बाद वैसा श्रम करने वाला सुपरिन्टेन्डेन्ट वहाँ पर आज तक नहीं आया। उनके अनन्तर श्रीमान् बाबा भागीरथजी अधिष्ठाता हो गये । आप विलक्षण त्यागी थे। आपके आजन्म 1 नमक और मीठाका त्याग था । आप निरन्तर स्वाध्याय में रत रहते थे, कोई हो, आप सत्य बात कहनेमें कभी नहीं चूकते थे । आपने मेरठ प्रान्तमें विद्यालयके लिए हजारों रुपये भेजे थे। मैं तो आपका अनन्यभक्त प्रारम्भसे ही था ।
आपका शासन इतना कठोर था कि अपराधके अनुकूल दण्ड देनेमें आप स्नेहको तिलाञ्जलि दे देते थे। एक बारकी कथा है कि - सिरसी जिला ललितपुरके एक छात्रने होलीके दिन एक छात्रके गालपर गुलाल लगा दी । लगाते हुए बाबाजीने आँखसे देख लिया। आपने उसे बुलाया और प्रश्न किया कि तुमने इस छात्रके गालमें क्यों गुलाल लगाई ? वह उत्तर देता है'महाराज ! होलीका दिवस था, इससे यह हरकत हो गई। ये दिन आमोद-प्रमोदके हैं। इनमें ऐसी त्रुटियाँ होती रहती हैं। वर्ष भरमें वह एक दिन ही तो हम लोगोंको आमोद-प्रमोदके लिए मिलता है। मैंने कोई गुरुतम अपराध नहीं किया, इसपर इतनी कुपितता भव्य नहीं ।' बाबाजी महाराजने कहा- 'आप किस अवस्थामें हो ?' छात्रने उत्तर दिया- 'छात्रावस्थामें हूँ।' तब बाबाजी महाराजने कहा - 'तुम छात्र हो, ब्रह्मचारी हो, अध्ययन करना ही तुम्हारा तप है, तुमसे संसारकी भावी उन्नति होनेवाली है, ऐसे कुत्सित कार्य करना क्या तुम्हारे पदके योग्य हैं ? हमारे भारतवर्षके पतनके कारण यही कार्य तो हुए हैं। यदि हमारी छात्र सन्तति सुमार्गपर आरूढ़ रहती तो यह अवसर भारतवर्षको न आता। आजके दिन जवान ही क्यों, बूढ़े और बालक भी अश्लील वाक्यों द्वारा जो अनर्थ करते हैं उसे कहते हुए शर्म आती है । जिस देशमें मनुष्योंकी ऐसी निन्द्य प्रवृत्ति हो वहाँ कल्याण होना बहुत दूर है।' छात्र बोला-'ऐसे अपराधको आप इतना गुरुतम रूप देते हैं, यह बुद्धिमें नहीं आता ।' बाबाजी महाराज बोले- 'आप कृपा कर शीघ्र ही विद्यालयसे पृथक् होकर जहाँ आपकी इच्छा हो चले जाइये। ऐसे छात्रोंसे विद्यालयकी क्या उन्नति होगी ?' वह छात्र चला गया, छात्रलोग एकदम भय-भीत हो गये और उस दिनसे हँसी मजाकका नाम न रहा ।
सब छात्र बाबाजीकी आज्ञा पालन करते थे । यद्यपि मैं बाबाजी के मुँह
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