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मेरी जीवनगाथा
प्रातःकाल श्रीमैदागिनीमें सर्वप्रथम श्रीपार्श्वनाथ स्वामीका पूजनकार्य सम्पन्न हुआ। अनन्तर गाजे बाजेके साथ श्रीस्याद्वाद विद्यालयका उद्घाटन श्रीमान् सेठ माणिकचन्द्रजीके करकमलों द्वारा सम्पन्न हुआ | आपने अपने व्याख्यानमें यह दर्शाया कि - 'भारत धर्मप्रधान देश है । इसमें अहिंसा धर्मकी ही प्रधानता रही, क्योंकि यह एक ऐसा अनुपम अलौकिक धर्म है जो प्राणियोंको अनन्त यातनाओंसे मुक्त कर देता है। चूँकि इसका साहित्य संस्कृत और प्राकृत में है, अतः इस बातकी महती आवश्यकता है कि हम अपने बालकों को इस विद्या का मार्मिक विद्वान् बनानेका प्रयत्न करें। आज संसारमें जो जैनधर्मका हास हो रहा है उसका मूल कारण यही है कि हमारी समाजमें संस्कृतके मार्मिक विद्वान् नहीं रहे। आज विद्वानोंके न होनेसे जैनधर्मका प्रचार एकदम रुक गया है 1 लोग यहाँ तक कहने लगे हैं कि वह तो एक वैश्यजातिका धर्म है, पूर्ण वैश्यजातिका नहीं, इने-गिने वैश्योंका है। अतः हमें आवश्यकता इस बात की है कि हम उस धर्मके प्रसारके लिये मार्मिक पण्डित बनानेका प्रयत्न करें। एतदर्थ ही आज मेरे द्वारा इस विद्यालयका उद्घाटन हो रहा है। मैं अपनेको महान् पुण्यशाली समझ रहा हूँ कि मेरे द्वारा इस महान् कार्यकी नींव रखी जा रही है । यद्यपि मेरा यह पक्ष था कि एक ऐसा छात्रावास खोला जाय जिसमें अंग्रेजी छात्रोंके साथ-साथ संस्कृतके भी छात्र रहते । परन्तु श्रीमान् देवकुमारजी रईस आरा और बाबू छेदीलालजी रईस बनारसने कहा कि यह सर्वथा अनुचित है। छात्रावाससे विशेष लाभ न होगा, अतः मैंने अपना पक्ष छोड़ उसी पक्षका समर्थन किया और जहाँ तक मुझसे बनेगा, इस कार्यमें पूर्ण प्रयत्न करूँगा ।' आपके बाद बाबू शीतलप्रसादजीने विशद व्याख्यान द्वारा सेठजीके अभिप्रायकी पुष्टि की। यहाँ आपको बाबू लिखनेका यह तात्पर्य है कि उस समय आप बाबू ही थे। जैनधर्मके प्रसारमें आपकी अद्वितीय लगन थी । आपने प्रतिज्ञा की थी कि मैं आजीवन हर तरहसे इस विद्यालयकी सहायता करूँगा और वर्षमें दो-चार बार यहाँ आकर निरीक्षण द्वारा इसकी उन्नतिमें सहयोग दूँगा । यह लिखते हुए प्रसन्नता होती है कि आपने अपनी उक्त प्रतिज्ञाका आजीवन निर्वाह किया। आप जहाँ जाते थे विद्यालयको एक मुश्त तथा मासिक चन्दा भिजवाते थे । जहाँ पर चतुर्मास करते थे वहाँसे हजारों रुपये विद्यालयको भिजवाते थे । कुछ दिन बाद आप ब्रह्मचारी हो गये, परन्तु विद्यालयको न भूले- उसकी सहायता निरन्तर करते रहे। वर्षोंतक आप विद्यालयके
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