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________________ स्याद्वाद विद्यालयका उद्घाटन (२) अन्तमें यही निश्चय किया कि ज्येष्ठ सुदी पञ्चमीको स्याद्वाद विद्यालयका उद्घाटन किया जावे। कुङ्कुमपत्रिका बनाई और लाल रंग में छपवाकर सर्वत्र वितरण कर दी। ___ बनारसके गण्यमान्य महाशयोंका पूर्ण सहयोग था । श्रीमान् रायसाहब नानकचन्द्रजीकी पूर्ण सहानुभूति थी। ज्यों-ज्यों मुहूर्त निकट आया, अनुकूल कारणकूट मिलते गये। महरौनीसे श्रीयुत्त बंशीधरजी, श्रीयुत्त गोविन्दरायजी तथा एक और छात्र के आनेकी सूचना आ गई। बम्बईसे सेठजी साहबके आनेका तार आ गया, आरासे बाबू देवकुमारजीका भी पत्र आ गया, देहलीसे श्रीमान लाला मोतीलालजीका तार आ गया कि हम आते हैं तथा श्रीमान् एडवोकेट अजितप्रसादजीकी सूचना आ गयी कि हम आते हैं। जेठ सुदि ४ के दिन ये सब नेतागण आ गये और मैदागिनीमें ठहर गये। (२) स्याद्वाद विद्यालयका उद्घाटन पञ्चमीको प्रातःकाल विद्यालयका उद्घाटन होना है। 'पण्डितों का क्या प्रबन्ध है ? .....उपस्थित लागोंने पूछा। मैंने कहा-'मैं श्रीशास्त्री अम्बा दासजीसे न्यायशास्त्रका अध्ययन करता हूँ, १५) मासिक स्कालर्शिप मुझे बम्बईसे श्रीसेठजीसाहबके पाससे मिलती है, वही उनके चरणोंमें अर्पित कर देता हूँ। अब २५) मासिक उन्हें देना चाहिये, वे ३ घण्टाको आ जावेंगे।' सबने स्वीकार किया। एक अध्यापक व्याकरणको भी चाहिये ?' मैंने कहा-'शास्त्रीजीसे जाकर कहता हूँ।' अच्छा शीघ्रता करो........ सबने कहा। मैं शास्त्रीजीके पास गया। २०) मासिकपर एक व्याकरणाचार्य और इतनेपर ही एक साहित्याध्यापक भी मिल गया। सुपरिन्टेन्डेन्ट पदके लिये वर्णी दीपचन्द्रजी नियत हुए। एक रसोइया, एक ढीमर, एक चपरासी इस तरह तीन कर्मचारी, तीन पण्डित, एक सुपरिन्टेन्डेन्ट इस प्रकार व्यवस्था हुई। इस समय मुझे मिलाकर केवल चार छात्र थे। जेठ सुदि ५ को बड़े समारोहके साथ विद्यालयका उद्घाटन हुआ। २५) मासिक श्रीमान् सेठ माणिकचन्द्रजी बम्बईने और इतना ही बाबू देवकुमारजी आराने देना स्वीकृत किया। इसी प्रकार बहुत-सा स्थायी द्रव्य तथा मासिक सहायता बनारसवाले पञ्चोंने दी जिसका विवरण विद्यालयकी रिपोर्ट में है। इस तरह यह महाकार्य श्रीपार्श्वनाथके चरणप्रसादसे अल्प ही समयमें सम्पन्न हो गया। जेठ सुदि ५ वीरनिर्वाण सं. २४३२ और विक्रम सं. १६६२ के दिन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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