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मार्ग में गंगा-यमुना संगम
बोले- 'अच्छा पानी बरसे तो हमें भी पत्र देना।' मैंने दृढ़ताके साथ कहा- 'बरसे क्या ? बरसेगा ही। मुझे दृढ़ विश्वास है कि जिस गिरिराजकी भक्तिपूर्वक वन्दना करनेसे तिर्यग्गति नरकगति मिट जाती है अर्थात् सम्यग्दर्शनका लाभ हो जाता है, क्योंकि सम्यग्दृष्टिके ही नरक और तिर्यग्गतिका बन्ध नहीं होता । फिर भला विचारिये कि जो वन्दना अनन्तं संसारके कारण मिथ्यात्वको भी ध्वस्त कर देती है, यदि वह मेरी यात्राके लिये जल बरसा देवे तो कौन आश्चर्य है ?' श्री सेठजी पुनः हँस गये - 'अच्छा।' इतनेमें वहाँ पर एक जैनी भाई, जो कि पेड़ा आदिको फेरी द्वारा बेच कर आजीविका करते थे, आये और बोले - 'हम यात्राको चलेंगे परन्तु रेलभाड़ा देना होगा।' मैंने कहा- 'भाई ! मैं तो छात्र हूँ मेरे पास रेलभाड़ा नहीं है।' सेठजीने कहा - ' इसकी चिन्ता मत करो जितना रुपया आने-जानेमें खर्च हो दुकानसे ले लो ।'
यह चर्चा होने के बाद सेठजी तो दुकान पर चले गये। मैंने उस जैनी भाईसे कहा कि 'कल ६ बजे ही गाड़ी जाती है, अतः मार्गके लिये कुछ मिठाई बना लो। 'अच्छा जाते हैं......' यह कह कर वह चला गया। प्रसन्नतासे रातं बीती । प्रातःकाल हमने श्रीजिनेन्द्रदेवका दर्शन, पूजन कर भोजन किया और साढ़े आठ बजे दोनों स्टेशनपर पहुँच गये । इलाहाबादका टिकट खरीदा, गाड़ीमें बैठ गये और ६ बजे जब गाड़ी छूटने लगी तब याद आई कि ज्योतिषीने कहा था कि 'तुम वैसाख सुदि १३ को १ बजेके बाद खुरजा न रह सकोगे तथा साथमें यह भी कहा था कि फिर खुरजा नहीं आओगे ।' मनमें बड़ा हर्ष हुआ कि अब भी ऐसे-ऐसे निमित्तज्ञानी हैं ।
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मार्गमें गंगा-यमुना संगम
दूसरे दिन इलाहाबाद पहुँच गये। स्टेशनसे ताँगा कर जैन धर्मशाला पहुँचे। यहाँ पर बड़े-बड़े जिनालय हैं जिनमें प्राचीन जिनबिम्ब भी हैं । यहाँसे अक्षयवट देखनेके लिये किलेमें गये । किलेके अन्दर एक मकान है। उसमें एक कल्पित सूखा पेड़ बना रक्खा है। वह जो भी हो परन्तु हजारों यात्री उसके दर्शनार्थ जाते हैं। हम भी इस अभिप्रायसे गये थे कि 'भगवान् आदिनाथने वट वृक्षके नीचे दैगम्बरी दीक्षा धारण की थी ।' यहाँसे दो मीलपर गंगा-यमुनाका संगम देखनेके लिये गये । यहाँ सहस्रों यात्री स्नानार्थ आते हैं, सैकड़ों पण्डोंके स्थान किनारेपर हैं जो यात्रियोंको अच्छा सुभीता देते हैं तथा उनसे द्रव्य भी उपार्जन करते हैं। वास्तवमें यही उनकी आजीविका है। तीर्थयात्रा
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