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गुरु गोपालदासजी वरैया
सिद्धान्तालंकार और पं. देवकीनन्दनजी व्याख्यानवाचस्पति की कृतियाँ हैं । आप विद्वान् ही न थे, लेखक भी थे। आपकी भाषामय गद्य-पद्यकी रचना अनुपम होती थी । आपने श्रीजैन सिद्धान्तप्रवेशिका और श्रीजैनसिद्धान्तदर्पणकी रचनाके द्वारा जैन सिद्धान्तमें प्रवेशका मार्ग खोल दिया था। आपका 'सुशीला' उपन्यास सर्वथा बेजोड़ है। उसमें आपने धार्मिक सिद्धान्तोंका रहस्य कथा द्वारा इस उत्तम शैलीसे विद्वानोंके सामने रक्खा है जिसे अवगत कर अत्यन्त आह्लाद होता है। आपकी भजनावलीको सुनकर यह भ्रम हो जाता है कि क्या यह स्वर्गीय पं. दौलतरामजीकी रचना हैं ।
आपमें एक गुण महान् था । वह यह कि यदि कोई त्यागी आपसे विद्याभ्यास करना चाहता था तो आप उसका समुचित प्रबन्ध करनेमें कसर नहीं करते थे। आप परीक्षक भी प्रथम श्रेणीके थे। एक बारका जिक्र है - मैंने मथुरासे एक पत्र श्रीमान् पण्डितजीको इस आशयका लिखा कि 'बाईजीका स्वास्थ्य अत्यन्त खराब है, अतः उन्होंने मुझे १५ दिनके लिये सिमरा बुलाया है।' आपने उत्तर दिया कि 'बाईजीका जो पत्र आया है उसे हमारे पास भेज दो।' मैंने क्या किया ? 'एक पत्र बाईजीके हस्ताक्षरका लिखकर मथुरामें डाल दिया । दूसरे दिन वह पत्र चौरासीमें मुझे मिल गया। मैंने उसे ही लिफाफामें बन्दकर श्रीपण्डितजीके पास भेज दिया। उन्होंने बाँचकर उत्तर लिखा कि 'तुम शीघ्र ही चले जाओ। परन्तु जब देशसे लौटो तब आगरामें हमसे मिलकर मथुरा जाना।' मैं जतारा गया और ५ दिन बाद आगरा आ गया। जब पण्डितजीसे मिला तब उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा - 'बाईजीका स्वास्थ्य अच्छा है ?' मैंने कहा - 'हाँ महाराज ! अच्छा है।' पण्डितजीने कहा- 'अच्छा, यह श्लोक याद कर लो और फिर विद्यालय चले जाओ ।' श्लोक यह था
'उपाध्याये नटे धूर्ते कुट्टिन्यां च तथैव च ।
माया तत्र न कर्तव्या माया तैरेव निर्मिता । ।
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एक ही बारमें श्लोक याद हो गया। साथ ही भाव भी समझमें आ गया। मैंने गुरुजीसे महती नम्र प्रार्थना की कि 'महाराज मैंने बड़ी गलती की है जो आपको मिथ्या पत्र देकर असभ्यता का व्यवहार किया ।' गुरुजीने कहा- जाओ हम तुमसे खुश हैं, यदि इस प्रकारकी प्रकृतिको अपनाओगे तो आजन्म आनन्दसे रहोगे । हम तुम्हारे व्यवहारसे सन्तुष्ट हैं और तुम्हारा अपराध क्षमा करते हैं । तुम्हें जो कष्ट हो, हमसे कहो हम निवारण करेंगे। जितने छात्र हैं हम उन्हें पुत्रसे भी अधिक समझते हैं। यदि अब जैनधर्मका विकास होगा तो इन्हीं छात्रोंके द्वारा होगा, इन्हींके द्वारा
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