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महासभाका वैभव
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अनायास हो जाता था। वक्ताओंमें श्रीमान् स्वर्गीय पण्डित गोपालदासजी वरैया, श्रीमान् स्वर्गीय पण्डित प्यारेलालजी अलीगढ़, श्रीमान् पण्डित शान्तिलालजी आगरा और शान्तिमूर्ति, संस्कृतके पूर्णज्ञाता एवं अलौकिक प्रतिभाशाली स्वर्गीय पण्डित बलदेवदासजी प्रमुख थे। इनके सिवाय अन्य अनेक गणमान्य पण्डित वर्गके द्वारा भी मेलाकी अपूर्व शोभा होती थी। साथमें भाषाके धुरन्धर विद्वानोंका भी समुदाय रहता था। जैसे कि लश्कर निवासी श्रीमान् स्वर्गीय पण्डित लक्ष्मीचन्द्रजी साहब । इनकी व्याख्यानशैलीको सुनकर श्रोताओंको चकाचौंध आ जाती थी। जिस वस्तुका आप वर्णन करते थे उसे पूर्ण कर ही श्वास लेते थे। जब आप स्वर्गका वर्णन करने लगते थे तब एक-एक विमान, उनके चैत्यालय और वहाँके देवोंकी विभूतिको सुनकर यह अनुमान होता था कि इनकी धारणाशक्तिकी महिमा विलक्षण है। इसी प्रकार श्रीमान् पण्डित चुन्नीलालजी साहब तथा पण्डित बलदेवदासजी कलकत्तावाले भी जैनधर्मके धुरन्धर विद्वान् थे। यही नहीं, कितने ही ऐसे भी महानुभाव मेलामें पधारते थे, जो धनशाली भी थे और विद्वान् भी अपूर्व थे। जैसे कि श्रीमान् पं. मेवारामजी राणीवाले तथा श्रीमान् स्वर्गीय पण्डित जम्बूप्रसादजी। बहुतसे महानुभाव ऐसे भी आते थे, जो आंग्ल विद्याके पूर्ण मर्मज्ञ होनेके साथ ही साथ पण्डित भी थे। जैसे श्रीमान् स्वर्गीय वैरिष्टर चम्पतरायजी साहब तथा श्रीमान् पण्डित अजितप्रसादजी साहब। आप लोगोंका जैनधर्मपर पूर्ण विश्वास ही नहीं था पाण्डित्य भी था। यहाँ मैं लिखते-लिखते एक नाम भूल गया बैरिष्टर जुगमन्धरदासजी साहबका । आप अंग्रेजीके पूर्ण मर्मज्ञ थे। आपकी वक्तृत्वशक्ति अंग्रेजीमें इतनी उच्चतम थी कि जब आप बैरिष्टरी पास करनेके लिए विलायत गये तब बड़े-बड़े लार्डवंश के लड़के आपके मुखसे अंग्रेजी सुननेकी अभिलाषा हृदयमें रख आपके पास आते थे। अंग्रेजीकी तरह ही आपका जैनधर्मविषयक पाण्डित्य भी अगाध था। श्रीमान् अर्जुनदासजी सेठी भी एक विशिष्ट विद्वान् थे। आप गोम्मटसारादि ग्रन्थोंके मर्मज्ञ विद्वान् थे। आपके प्रश्नोंका उत्तर वरैयाजी ही देनेमें समर्थ थे। एक बात भाषाके विद्वानोंकी और भूल गया। यह कि उस समय गोम्मटसारके मर्मको जाननेवाले श्री अर्जुनदासजी नावा इतने भारी विद्वान् थे कि उनके सामने बड़े-बड़े धुरन्धर विद्वान् भी झिझकते थे। ऐसे-ऐसे अनेक महानुभाव मथुरामें आते थे। आठ दिन तक मथुरा नगरीके चौरासी स्थानपर चतुर्थकालकी स्मृति आ जाती थी।
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