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रेशन्दीगिरि और कुण्डलपुर
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भ्रमण करना अच्छा नहीं है।'
मैं उनको धन्यवाद देता हुआ श्री सिद्धक्षेत्र नैनागिरिके लिये चल पड़ा। मार्गमें महती अटवी थी, जहाँ पर वनके हिंसक पशुओंका संचार था। मैं एकाकी चलता जाता था। कोई सहायी न था। केवल आयुकर्म सहायी था। चलकर रुरावन पहुँचा। यहाँ भी एक जैनमन्दिर है। दस घर जैनियोंके हैं। रात्रि भर यहीं रहा। प्रातःकाल श्री नैनागिरिके लिये प्रस्थान कर दिया और दिनके दस बजे पहुंच गया। स्नानादिसे निवृत्त हो श्री जिनमन्दिरके दर्शनके लिये उद्यमी हुआ। प्रथम तो सरोवरके दर्शन हुए, जो अत्यन्त रम्य था। चारों
ओर सारस आदि पक्षीगण शब्द कर रहे थे। चकवा आदि अनेक प्रकारके पक्षीगणों के कलरव हो रहे थे। कमलोंके फूलोंसे वह ऐसा सुशोभित था, मानो गुलाबका बाग ही हो। सरोवरका बँधान चंदेल राजाका बँधाया हुआ है। इसी परसे पर्वतपर जानेका मार्ग था। पर्वत बहुत उन्नत न था। दस मिनट में ही मुख्य द्वार पर पहुँच गया।
___ यहाँ पर एक अत्यन्त मनोहर देवीका प्रतिबिम्ब देखा, जिसे देखकर प्राचीन सिलावटोंकी कर-कुशलताका अनुमान सहजमें हो जाता था। ऐसी अनुपम मूर्ति इस समयके शिल्पकार निर्माण करनेमें समर्थ नहीं। पश्चात् मन्दिरोंके बिम्बोंकी भक्तिपूर्वक पूजा की। यह वही पर्वतराज है जहाँ श्री १००८ देवाधिदेव पार्श्वनाथ प्रभुका समवसरण आया था और वरत्तादि पाँच ऋषिराजोंने निर्वाण प्राप्त किया था। रेशन्दीगिरि इसीका नाम है। यहाँ पर चार या पाँच मन्दिरोंको छोड़ शेष सब मन्दिर छोटे हैं। जिन्होंने निर्माण कराये वे अत्यन्त रुचिमान् थे, जो मन्दिर तो मामूली बनवाये, पर प्रतिष्ठा करानेमें पचासों हजार रुपये खर्च कर दिये। यहाँ अगहन सुदी ग्यारहसे पूर्णिमा तक मेला भरता है। जिनमें प्रान्त भरके जैनियोंका समारोह होता है। दस हजार तक जैनसमुदाय हो जाता है। यह साधारण मेलाकी बात है। रथके समय तो पचास हजार तककी संख्या एकत्रित हो जाती है। एक नाला भी है जिसमें सदा स्वच्छ जल बहता रहता है। चारों तरफ सघन वन है। एक धर्मशाला है, जिसमें पाँचसौ आदमी ठहर सकते हैं। यह प्रान्त धर्मशाला बनानेमें द्रव्य नहीं लगाता। प्रतिष्ठामें लाखों रुपये व्यय हो जाते हैं। जो कराता है उसके पच्चीस हजार रुपयेसे कम खर्च नहीं होते। आगन्तुक महाशयोंके आठ रुपया प्रति आदमीके हिसाबसे चार लाख हो जाते हैं। परन्तु इन लोगोंकी दृष्टि धर्मशालाके निर्माण
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