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________________ गोपाचलके अञ्चलमें 421 चित्राम हैं। दो द्वारपाल ऐसे सुन्दर बने हैं कि उनके गहनोंमें सच्चे मोती जड़े हुए हैं। इसके बाद दहलानमें एक कोठी है। उसमें प्राचीन पत्थरके अतिमनोहर बिम्ब विद्यमान हैं। लगभग १२ बिम्ब होंगे। इसके बाद एक दहलान है, जहाँ सुवर्णका चित्राम है। इस चित्राममें ५२ सेर सोना लगा था, ऐसा प्राचीन मनुष्योंका कहना था। ऐसा सुन्दर दृश्य है कि हमारे देखनेमें अन्यत्र नहीं आया। चौकमें संगमर्मर जड़ा हुआ है। वह इतना विशाल है कि दो हजार आदमी उसमें बैठ सकते हैं। दहलानके पीछे एक कूप और स्नानको स्थान है। यहाँ रात्रिको दीपक नहीं जलाते और न बिजली लगाते हैं। धोती-दुपट्टे छने पानीसे धुलवाते हैं। इस मन्दिरके प्रबन्धकर्ता श्री कन्हैयालालजी हैं। आप बहुत ही योग्य हैं, विद्वान् भी हैं। भोजनादिकी प्रक्रिया आपके यहाँ योग्य है। आपके सुपुत्र माणिकचन्द्र वकील हैं। आप सोनागिरि सिद्धक्षेत्रके मन्त्री हैं तथा इनके भाई श्रीगप्पूलालजी हैं, जो बहुत ही वाक्पटु हैं। आपके दो सुपुत्र हैं। दोनों ही योग्य हैं, परन्तु जैसी धार्मिक रुचि और जैसा ज्ञान आपका है वैसा आपके औरस पुत्रोंका नहीं। इसका मूल कारण आप ही हैं, क्योंकि आपने उस प्रकारकी शिक्षासे बालकोंको दूर रक्खा । आपके पास इतनी सचला सम्पत्ति है कि एक पाठशालाका क्या दो पाठशालाओंका व्यय दे सकते हैं, परन्तु उस ओर लक्ष्य नहीं। यहाँपर और भी बहुत मनुष्य ऐसे हैं जो पाठशाला चला सकते हैं, परन्तु पढ़ना-पढ़ाना एक आपत्ति मानते हैं। इस मन्दिरसे थोड़ी दूर पर एक दूसरा मन्दिर तेरापन्थका है, जिसके संरक्षक सेठ मिश्रीलालजी हैं, जो बहुत ही योग्य हैं। मन्दिर बहुत ही सुन्दर बना हुआ है। चारों ओर वायुका संचार है। गन्धकुटीमें बहुत ही सुन्दर बिम्ब हैं। स्फटिक मणिके बिम्ब बहुत ही मनोहर हैं। श्रीपार्श्वनाथ भगवान्का बिम्ब बहुत ही सातिशय और आकर्षक है। उसके. दर्शन कर संसारकी माया विडम्बनारूप अँचने लगती है। यहाँसे चलकर एक बड़ा भारी मन्दिर बीसपन्थ आम्नायका चम्पाबागमें है। मन्दिर बहुत भव्य है। जैसा सर्राफाका मन्दिर है, वैसा ही यह मन्दिर है। इसका चौक और इसकी दहलानें बहुत सुन्दर हैं। वेदिकामें सुवर्णका काम बहुत ही चित्ताकर्षक है। इसके प्रबन्धकर्ता श्री सेठ गोपीलालजी साहब हैं। आप सुयोग्य मानव हैं। आपका ज्ञान अच्छा है तथा इसी मन्दिरमें सेठ बुधमल्लजी साहब भी हैं, जो योग्य व्यक्ति हैं। आपके सुपुत्र भी योग्य हैं। परन्तु उनमें आप जैसी धार्मिक रुचि नहीं। आप व्यापारमें कुशल हैं, परन्तु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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