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________________ मेरी जीवनगाथा 416 मुझे यहाँसे अन्यत्र न जाना पड़े। परन्तु पं. चन्द्रमौलिजीने प्रबल प्रेरणाकी और देहली जाकर तथा श्री लाला राजकृष्णजीसे मिलकर एक डेप्युटेशन लाये। डेप्युटेशनमें श्रीमान् लाला राय सा. उलफतरायजी, लाला हरिश्चन्द्रजी, लाला जुगलकिशोरजी कागजी, लाला नेमिचन्द्रजी जौहरी, लाला रघुवीरसिंहजी बिजलीवाले तथा संघके प्रधानमन्त्री पं. राजेन्द्रकुमारजी आदि थे। इसी समय बनारससे पं. महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य तथा पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री भी आ गये। इन सबने देहली चलनेका हार्दिक अनुरोध किया। इससे जैनधर्मके प्रचारका विशेष लाभ दिखलाया, जिससे मैंने देहली चलनेकी स्वीकृति दे दी। मार्गमें संघ की सब व्यवस्था करनेके लिए लाला राजकृष्णजीने पं. चन्द्रमौलिजीको निश्चित किया। पं. चन्द्रमौलिजी बहुत ही योग्यता और तत्परताके साथ सब प्रकारकी व्यवस्था करते हैं। मार्गमें सभा आदिका आयोजन भी करते हैं। समाज ऐसे नवयुवक विद्वानोंको यदि कार्य करनेका अवसर प्रदान करे तो विशेष लाभ हो सकता है। लश्करकी ओर वैशाख वदि ४ सं. २००६ को प्रातःकाल सोनागिरिसे चलकर चाँदपुर आ गये। यह ग्राम अच्छा है। कुल तीन सौ घर यहाँपर हैं। उनमें सौ घर यादववंशी क्षत्रिय, पच्चीस घर गहोई वैश्य, पचास घर ब्राह्मण और शेष घर इतर जातिवालोंके हैं। यहाँ पर एक स्कूल है। उसमें ठहर गये। स्कूलका मास्टर बहुत उत्तम प्रकृतिका था। उसने गर्मीके प्रकोपके कारण अपने ठहरनेके मकानमें ठहरा दिया और आप स्वयं गर्मीमें ऊपर ही ठहर गया। बहुत ही शिष्टताका व्यवहार किया तथा एक बहुत ही विलक्षण बात यह हुई कि मास्टर साहबने समाधितन्त्र सुनकर बहुत ही प्रसन्नता प्रकट की। उसकी श्रद्धा जैनधर्ममें हो गई और उसने उसी दिनसे समाधितन्त्रका अभ्यास प्रारम्भ कर दिया तथा उसी दिनसे दिवस-भोजन एवं पानी छानकर पीनेका नियम ले लिया। इसके सिवा उसने सबसे उत्तम एक बात यह स्वीकृत की कि गर्भमें बालक आनेके बाद जब तक बालक पाँच या छह: मासका न हो जावे तब तक ब्रह्मचर्यसे रहना। साथमें यह निश्चय भी किया कि मेरी गृहस्थी जिस दिन योग्य हो जावेगी उस दिनसे धर्मसाधन करूँगा। बहुत ही निर्मल प्रकृतिका आदमी है। प्रातःकाल जब मैं ग्रामसे चलने लगा तब तक एक मील सड़क तक साथ आया। बहुत आग्रह करनेके बाद वापिस गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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