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सागरका समारोह
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नायक जबलपुर तथा स्थानीय श्रीमान् पं. दयाचन्द्रजी प्रधानाध्यापक, श्रीमान् साहित्याचार्य पं. पन्नालालजी साहब साहित्याध्यापक, श्रीमान् पं. माणिकचन्द्रजी साहब शास्त्री, श्रीमान् पं. लक्ष्मणप्रसादजी 'प्रशान्त' तथा श्रीमान् पं. चन्द्रमौलिजी शास्त्री सुपरिन्टेन्डेन्ट आदि अनेक विद्वान् महानुभावोंका जमाव था। जबलपुर आदिसे धनिक वर्ग भी पधारे थे। जैसे श्रीमान् सेठ वेणीप्रसादजी तथा श्रीमान् सेठ रामदासजी आदि । यह सब सज्जन महाशय आनन्दसे धर्मशालामें रहकर उत्सवकी शोभा बढ़ा रहे थे।
रात्रिको सभा हुई, जिसमें आगत विद्वानोंके उत्तमोत्तम भाषण हुए। पं. देवकीनन्दनजीका भाषण बहुत ही मार्मिक हुआ। इसके बाद वाणीभूषणजीका व्याख्यान हुआ। विद्यालयोंको अच्छी सहायता हो गई। साठ हजार संस्कृत विद्यालयको मिल गये। ग्यारह हजार रुपयों में मेरी माला मलैयाजीने ली तथा चालीस हजार रुपये आपने हाईस्कूलकी बिल्डिंगको दिये। इसी प्रकार महिलाश्रमका भी उत्सव हुआ। उसके लिये भी पन्द्रह हजार रुपयेकी सहायता मिल गई। खुरईसे श्रीमान् गणपतिलालजी गुरहा, जो कि एक प्रसिद्ध व्यक्ति है, इस उत्सवमें पधारे थे। क्रमशः मेलाका कार्यक्रम समाप्त हुआ। आगत लोग अपने-अपने घर चले गये। सात वर्षके बाद आनेपर मैंने देखा कि सागर समाजने अपने कार्योमें पर्याप्त प्रगति की है। मेरे अभावमें उन्होंने महिलाश्रम खोलकर बुन्देलखण्डकी विधवाओंका संरक्षण तथा शिक्षाका कार्य प्रारम्भ किया है तथा जैन हाईस्कूल खोलकर सार्वजनिक सेवाका केन्द्र बढ़ाया है। संस्कृत विद्यालय भी अधिक उन्नति पर है। साथ ही और भी स्थानीय पाठशालाएँ चालू की हैं। मुझे यह सब देखकर प्रसन्नता हुई। सात सौ मीलकी लम्बी पैदल यात्राके बाद निश्चित मंजिलपर पहुँचनेसे मैंने अपनेको भारहीन-सा अनुभव किया।
सागरके अंचलमें सागर ही नहीं, इससे सम्बद्ध ग्रामोंमें भी लोगोंके हृदयमें शिक्षाके प्रति प्रेम जागृत होने लगा था। खुरईमें भी वहाँकी समाजने श्री पार्श्वनाथ जैन गुरुकुलकी स्थापना कर ली थी। उसका उत्सव था, जिसमें श्रीमान् पं. देवकीनन्दनजी, सिद्धान्तके मर्मज्ञ पं. बंशीधरजी इन्दौर तथा मुन्नालालजी समगौरया आदि विद्वान पधारे थे। कारंजासे श्रीमान् समन्तभद्रजी क्षुल्लकका भी आगमन हुआ था। मैं भी पहुँचा, बहुत ही समारोह के साथ गुरुकुलका
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