________________
मेरी जीवनगाथा
372
साथ चुप रह गया।
अनन्तर हम सो गये। प्रातःकाल चलकर पाटन आये । यहाँपर दस घर जैनियों के होंगे। यह ग्राम पं. मुन्नालालजी रांधेलीयका है। आपका मन्दिर भी यहीं है। यहाँपर बण्डासे पच्चीस जैनी आ गये। यहाँके जैनियोंने सबके भोजनका प्रबन्ध किया। विनैकावाले सिंघई भी आये तथा विनैका चलने के लिये बहुत आग्रह किया, परन्तु हम लोग बण्डाको प्रस्थान कर गये। दूसरे दिन बण्डा पहुंचे। सादर स्वागत हुआ। दो दिन रहे।
सागरका समारोह __ यहाँसे सागरके लिये प्रस्थान कर दिया। बीचमें कर्रापुर भोजन हुआ। यहाँ सागरसे मलैया शिवप्रसादजी साहब तथा सिंघई राजारामजी, सिंघई होतीलालजी आदि मिलनेके लिये आये। यहाँसे चलकर बहेरिया ग्राममें रात्रि बितायी। यहाँ भी बहुतसे मनुष्य मिलने आये। प्रातः काल होते-होते गमरिया नाकेपर पचास मनुष्य आ गये और कचहरी तक पहुँचते-पहुँचते हजारों नर-नारी आ पहुँचे। बैन्ड बाजा तथा जुलूसका सब सामान साथ था। छावनीमेंसे घूमते हुए जूलूसके साथ श्रीमलैयाजीके हीरा ऑयल मिल्स पहुँचे । इन्होंने बड़ा ही स्वागत किया। अनन्तर कटरा बाजार आये यहाँपर गजाधरप्रसादजीने, जो कि खजानेमें क्लर्क हैं, घरके दरवाजेके समीप पहुँचनेपर मंगल आरतीसे स्वागत किया। अनन्तर सिंघई राजाराम मुन्नालालजीने बड़े ही प्रेमके साथ स्वागत किया। पश्चात् श्रीगौराबाई जैन मन्दिरकी वन्दना की। यहाँपर मूर्तियाँ बहुत मनोज्ञ हैं तथा सरस्वतीभवन भी विशाल है, जिसमें पाँच सौ आदमी सानन्द शास्त्र श्रवण कर सकते हैं। यहाँपर जन-समुदाय अच्छा है। इतना स्थान होनेपर भी संकीर्णता रहती है। इस मन्दिरमें अवसर आनेपर धर्म-प्रभावनाके कार्य बड़े उत्साहके साथ सम्पन्न होते रहते हैं। यहाँसे जुलूसके साथ बड़ा बाजार होते हुए मोराजी भवनमें पहुँच गये।
मार्गमें पच्चीसों स्थानोंपर तोरणद्वार तथा बन्दनवारे थे। मोराजीकी सजावट भी अद्भुत थी। वहाँ चार हजार मनुष्योंका समुदाय था। बड़े ही भावसे स्वागत किया। आगत जनताको अत्यन्त हर्ष हुआ। बाहरसे अच्छे-अच्छे महाशयोंका शुभागमन हुआ था। श्रीमान् पं. देवकीनन्दनजी साहब कारजा, श्रीमान् पंडित जीवन्धरजी साहब इन्दौर, श्रीमान् वाणीभूषण पं. तुलसीरामजी काव्यतीर्थ बड़ौत, श्रीमान् पं. कस्तूरचन्द्रजी ईसरी, श्रीमान् ब्र. पं. कस्तूरचन्द्रजी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org