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मार्गमें
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और वचनोंकी यातना न सह सकने के कारण कूपमें डूबकर मर जाती हैं। इन रूढ़ियोंका मूल कारण स्त्रीसमाजमें योग्य शिक्षाकी न्यूनता है ।
यहाँसे चलकर दो मील पर एक अहीरोंकी पल्ली थी, वहीं ठहर गये । वहाँ थोड़ी दूरपर एक सुन्दर नदी बहती है । वहाँ सायंकालके समय शौच क्रिया करनेके लिये गये। घाटके ऊपर उन्नत वृक्षसमुदाय था । वहींपर आनन्दसे बैठ गये और मनमें यही भावना उत्पन्न हुई कि ऐसा ही स्थान ध्यानके योग्य होता है। एक घण्टा सामायिक क्रिया कर स्थानपर आ गये। इतनेमें गाड़ीवान कहता है कि 'चकाकी हाल उतर गई है, अतः मैं बरायठा जाता हूँ और वहाँसे दूसरी गाड़ी लाता हूँ। आप निश्चिन्त होकर सोइये।' इसी बीच जिसके घरपर ठहरे थे वह गृहपति आ गया और हमसे बोला- वर्णीजी, इस गाड़ीवानको जाने दीजिये | जिसने गाड़ी भेजी उसने जान बूझकर रद्दी गाड़ी भेजी। वह लोग बड़े कुशल होते हैं। इनकी मायाचारी आप क्या जानें ? हम इनके किसान हैं । इनके हथकंडोंसे परिचित हैं। आज इनकी बदौलत हम लोगोकी यह दशा हो गई है कि तनपर कपड़ा नहीं, घरमें दाना नहीं। पर परमात्मा सबकी फिक्र रखता है। ऐसा कानून बना कि इनकी साहूकारी मिट्टीमें मिल गई । कर्जाकी बीस वर्षकी किश्तें हो गई। खैर, इस चर्चासे क्या लाभ ? मेरी घरकी गाड़ी है वह आपको सागर तक पहुँचा आवेगी । क्या आप मेरी इस नम्र प्रार्थनाको स्वीकार न करेंगे। इन लोगोंके द्वारा तो आप ६०० मील आ गये। बीस मील यदि मेरे द्वारा भी सेवा हो जावे तो मैं भी अपने जन्मको सफल समझँ ? मैंने कहा- 'आप लोग किसान हैं, खेतोंका काम अधिक रहता हैं।' इस पर वह बोला- 'अच्छा, आप इसी गाड़ीसे जाईये।' इसके अनन्तर उसने कहा - 'कुछ उपदेश दीजिए।' मैने कहा- 'अच्छा आप कूड़ा वगैरहमें आग न लगाइये तथा परस्त्रीका त्याग करिये।' वह बोला- 'न लगावेंगे, न लगते देख खुश होवेंगे । परस्त्रीका त्याग वगैरह शब्द तो हम नहीं जानते, पर यह अवश्य जानते हैं कि जो हमारी स्त्री है वही भोगने योग्य है । जब हम अत्यन्त व्याकुल होते हैं । तब उसके साथ विषय सेवन करते हैं। इसीसे आजतक हमारा शरीर नीरोग है।' उसने अपने पुत्रको बुला कर उससे भी कहा कि 'बेटा! वर्णीजी जो व्रत देते है, उसका पालन करना तथा कभी वेश्यास्त्रीके नाचमें न जाना और वर्णीजीका कहना है कि रोज रामनामकी माला जपना ।' अन्तमें वह बोला- 'कुछ दुग्ध पान करेंगे ?' मैंने कहा- 'मैं एक बार ही भोजन और पानी लेता हूँ।' वह आश्चर्यके
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