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मेरी जीवनगाथा
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उद्घाटन हुआ। रुपया भी लोगोंने पुष्कल दिया। विशेष द्रव्य देनेवाले श्री स. सिं. गणपतिलालजी गुरहा तथा श्रीमन्त सेठ ऋषभकुमारजीने गुरुकुल को बिल्डिंग बनवा देनेका वचन दिया। इस अवसरपर भेलसाके प्रसिद्व दानवीर श्रीमन्त सेठ लक्ष्मीचन्द्रजी पधारे थे। आपने गुरुकुलको अच्छी सहायता दी। आजकल जो धवल आदि ग्रन्थोंका उद्धार हो रहा है उसका प्रथम यश आपको ही है।
खुरईसे चलकर ईसरवाराके प्राचीन मन्दिरके दर्शन करनेके लिये गया। एक दिन रहा। वहींपर हलाहल ज्वर आ गया। एक सौ पाँच डिग्री ज्वर था, कुछ भी स्मृति न थी। पता लगते ही सागरसे सिंघईजी आ गये। साथमें श्रीब्रह्मचारी चिदानन्दजी भी थे। मुझे डोलीमें रखकर सागर ले आये। मुझे कुछ भी स्मरण न था। दस दिन बाद स्वास्थ्य सुधरा । यह सब हुआ। परन्तु भीतर की परिणतिका सुधार नहीं हुआ, इससे तात्त्विक शान्ति नहीं आई।
सुखपूर्वक सागरमें रहने लगे। चातुर्मास यहींका हुआ। भाद्रमासमें अच्छे-अच्छे महानुभावोंका संसर्ग रहा। सहारनपुरसे श्री नेमिचन्द्रजी वकील, उनके बड़े भाई रतनचन्द्रजी मुख्तार, जो कि करणानुयोगका अच्छा ज्ञान रखते हैं, पंडित शीतलप्रसादजी, पण्डित हुकुमचन्द्रजी सलावा जिला मेरठ तथा श्रीत्रिलोकचन्द्रजी खतौली आदि सज्जन पधारे। आपके सहवाससे तात्त्विक चर्चाका अच्छा आनन्द रहा। गुजरात प्रान्तसे भी मोहनभाई राजकोट तथा ताराचन्द्रजी आदि सज्जन पधारे। एक महाशय अहमदाबादसे भी पधारे। इस प्रकार चातुर्मास आनन्दसे बीता।
इसके बाद पं. चन्द्रमौलिजी, जो कि सत्तर्क विद्यालयके सुपरिन्टेन्डेन्ट थे, पटना ग्राम ले गये। बीचमें ढाना मिला। यहाँ पर स्वर्गीय कन्छेदीलालजी चौधरीके सुपुत्र रहते हैं, जो धनाढ्य हैं, परन्तु परिणामोंके अतिलुब्ध हैं। बड़े दबावमें आकर एक बोरा गेहूँ पाठशालाको वार्षिक दान किया। फिर पटना पहुँचे। यह गाँव रहली तहसील में है। यहाँपर बाबूलालजी बहुत सज्जन हैं। एक पाठशाला है, जिसमें पं. जानकीप्रसाद अध्यापक अध्ययन कराते हैं। पाठशालाका उत्सव हुआ। दो हजार चारसौ का स्थायी फण्ड पाठशालाका हो गया। यहाँसे रहली गये। नदीके तटपर यह नगर बसा हुआ है। उस पार पटनागंज है, जहाँ जैनधर्मके बड़े-बड़े मन्दिर बने हुए हैं। मन्दिरोंमें नन्दीश्वर द्वीपकी रचना है। मन्दिरों की पूजाके लिये एक गाँव लगा हुआ है, जिसका
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