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राजगृहीमें धर्मगोष्ठी
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वास्तविक स्वराज्यकी है। उसके लिये हमें विषयकषायोंको त्यागनेकी आवश्यकता है। जिस प्रकार भारतको स्वतन्त्र करानेके लिये महात्मा गाँधी आदि महापुरुष कटिबद्ध रहे और पं. नेहरू आदि कटिबद्ध हैं उसी प्रकार आत्माको स्वतन्त्र करनेके लिए श्रीशान्तिसागरजी महाराज दिगम्बराचार्य दक्षिण देशवासी तथा श्रीसूर्यसागरजी महाराज दिगम्बराचार्य उत्तर भारतवासी कटिबद्ध हैं। वास्तविक स्वराज्यके मार्गदर्शक आप ही है, आपके उपदेशसे हजारों मनुष्य धर्ममार्गमें दृढ़ हुए हैं।
आचार्य-युगल तो अपने कर्तव्यमें निरत हैं, परन्तु गृहस्थोंका लक्ष्य अपने कर्तव्यकी पूर्तिमें जैसा चाहिये वैसा नहीं हैं-अभी बहुत त्रुटि है। प्राचीन संस्कृतिकी रक्षा करनेवाला ऐसा एक भी आयतन अबतक नहीं बन सका है कि जिसमें प्रतिवर्ष कम-से-कम बीस तो दिग्गज विद्वान् निकलें, एक भी ऐसा विद्यालय नहीं, जहाँ सभी विषयोंकी शिक्षा दी जाती हो । जैनियोंमें एक स्याद्वाद विद्यालय ही ऐसा है जो सर्व विद्यालयोंके केन्द्र स्थानमें है, परन्तु उसमें आज तक एक लाख रुपयेका कोष नहीं हो सका। अतः यही कहना पड़ता है कि पञ्चमकाल हैं, इसमें ऐसे उत्कृष्ट धर्मकी वृद्धि होना कठिन है, इत्यादि ऊहापोह हम लोगोंमें होता रहा। निर्वाणोत्सवके दिन यहाँ बहुत भीड़ हो जाती है। जलमन्दिरमें ठीक स्थान पानेके लिये लोग बहुत पहलेसे जा पहुँचते हैं और इस तरह सारी रात मन्दिरमें चहल-पहल बनी रहती हैं। हम लोगोंने भी श्रीमहावीर स्वामीका निर्वाणोत्सव आनन्दसे मनाया।
राजगृहीमें धर्मगोष्ठी पावापुरसे चलकर राजगृही आये। पञ्च पहाड़ीकी वन्दना की । यहाँका चमत्कार विलक्षण है-पर्वतकी तलहटीमें कुण्ड है, पानी गरम है और जिनमें एक ही बार स्नान करनेसे सब थकावट निकल जाती है। अधिकांश लोग पहले दिन तीन पहाड़ियोंकी और दूसरे दिन अवशिष्ट दो पहाड़ियोंकी वन्दना करते है। विरले मनुष्य पाँचों पहाड़ियोंकी भी वन्दना एक ही दिनमें कर लेते हैं। पहाड़ियोंके ऊपर सुन्दर-सुन्दर स्थान है, परन्तु हम लोग उनका उपयोग नहीं करते, केवल दर्शन कर ही चले आते हैं।
____ मैं तीन मास यहाँ रहा। प्रातः काल सामायिक करने के बाद कुण्डोंपर जाता था और वहीं आधा घण्टा तक स्नान करता था। वहीं पर बहुतसे उत्तम पुरुष आते थे। उनके साथ धर्मके ऊपर विचार करता था। अन्तमें सबके परामर्शसे यही सच निकला कि धर्म 'तो आत्माकी निर्मल परिणतिका नाम है।
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