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ईसरीसे गया फिर पावापुर
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जानकीदास कन्हैयालालजीकी ओर से प्रीतिभोज हुआ। वहाँ से चलकर कई दिन बाद नवादा पहुँच गये। यहाँ पर श्रीलक्ष्मीनारायणजी साहब बहुत धर्मात्मा सज्जन हैं। उनके आग्रहसे दो दिन रहा। आपके दो सुपुत्र हैं। बहुत ही सुयोग्य हैं। एक पुत्र सुगुणचन्द्र प्रान्तीय खण्डेलवाल सभाके मन्त्री हैं। आपके हृदयमें जातिसुधारकी प्रबल भावना है। आप प्राचीन विचारोंके नहीं, नवीन सुधार चाहते हैं। साथमें धार्मिक रुचि भी आपकी उत्तम है।
यहाँसे श्रीगुणावाजी गये। यहाँपर एक मन्दिर बहुत ही सुन्दर है। चारों तरफ ताड़के वृक्षोंका वन है। बीचमें बहुत सुन्दर कूप है। प्रातः काल जब पंक्तिबद्ध ताड़वृक्षोंके पत्रोंसे छनकर बाल-दिनकरकी सुनहली किरणें मन्दिरकी सुधाधवलित शिखरपर पड़ती हैं, तब बड़ा सुहावना मालूम होता है। मन्दिरमें एक शुभ्रकाय विशाल मूर्ति है। मन्दिरसे थोड़ी दूरपर एक सरोवर है। उसमें एक जैन मन्दिर है। मन्दिरमें श्रीगौतमस्वामीका प्रतिबिम्ब है।
यहाँ थक गया, अतः यह भाव हुआ कि यहीं निर्वाण-लाडूका उत्सव मनाना योग्य है। सायंकाल सड़कपर भ्रमण करनेके लिये गया। इतनेंमें दो भिखमंगे माँगनेके लिए आये। मैं अन्दर जाकर लाडू लाया और दोनोंको दे दिये। मैंने उनसे पूछा 'कहाँ जाते हो ? उन्होने कहा-'श्रीमहावीर स्वामीके निर्वाणोत्सवके लिये पावापुर जाते हैं। मैंने कहा-'तुम्हारे पैर तो कुष्टसे गलित हैं, कैसे पहुँचोगे ?' उन्होंने कहा-श्रीवीर प्रभुकी कृपासे पहुँच जावेंगे। उनकी महिमा अचिंत्य है। उन्हीं के प्रतापसे हमें वहाँ एक वर्षका भोजन मिल जाता है। उन्हीं के प्रतापसे हमारा क्या, प्रान्त भरके लोगोंका कल्याण होता है। महावीरस्वामीका अचिन्त्य और अनुपम प्रताप है। अहिंसाका प्रचार आपके ही प्रभावका फल है। यदि इस युगके आदिमें श्रीवीर प्रभुका अवतार न होता तो सहस्रों पशुओं के बलिदानकी प्रथा न रुकती। संसार महाभयानक है। इनमें नाना मतोंकी सृष्टि हुई, जिनसे परस्पर में अनेक प्रकारकी विचार-विभिन्नता हो गई। धर्मका यथार्थ स्वरूप कहनेवाला तो वीतराग सर्वज्ञ ही है। वीतरागता और सर्वज्ञता कोई अलौकिक वस्तु नहीं। मोहका तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायका अभाव होते ही आत्मा में वीतरागता और सर्वज्ञता दोनों ही प्रकट हो जाते हैं, अतः ऐसी आत्माके द्वारा जो कुछ कहा जाता है वही धर्म
हैं।'
भिखमंगोंके मुँहसे इतनी ज्ञानपूर्ण बात सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने
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