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मलेरिया
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मिलती है। उसके तटपर श्वेताम्बर सम्प्रदायका एक सुन्दर मन्दिर बना हुआ है। एक धर्मशाला भी है। एकान्त स्थान है। यदि कोई धर्मध्यानके लिये रहना चाहे तो सब प्रकारकी सुविधाएँ हैं।
नदीके दूसरे तटपर श्रीरामचन्द्र बाबूका बंगला बना हुआ है। एक बार हम, चम्पालाल सेठी, बाबू गोविन्दलालजी तथा बाबा जगन्नाथ प्रसादजी आदि एक दिन यहाँ रहे थे। वहीं पर एक चैत्यालय भी है। आनन्दसे धर्मध्यानमें काल गया, परन्तु कर्मका विपाक प्रबल है, बहुत दिन नहीं रह सके।
यहाँसे गिरिडीह गये। धर्मशालामें निवास किया। मैं बाबू राधा कृष्णके बंगलामें ठहरा । यहाँ पर धर्मशालामें जो जिनालय है वह बहुत ही मनोज्ञ है। एक चैत्यालय श्रीमान् ब्रह्मचारी खेतसीदासका है। ऊपर चैत्यालय और नीचे सरस्वतीभवन है। बाबू रामचन्द्रजीका धर्मप्रेम सराहनीय है। आपके यहाँ भाोजनादिकी व्यवस्था शुद्ध है। कोई भी अतिथि आनन्दसे कई दिन रह सकता है। खेतसीदासजी ब्रह्मचारी बहुत ही धार्मिक व्यक्ति हैं। आप एक बार भोजन करते हैं और उसी समय पानी पीते हैं तथा प्रतिदिन सैकड़ों कंगालोंको दान देते हैं। इसी तरह बाबू कालूरामजी भी योग्य व्यक्ति हैं। आपके यहाँ भी प्रतिदिन अनेक गरीबोंको पकी खिचड़ी आदिका भोजन मिलता है। बाबू रामचन्द्रजीके यहाँ भी प्रतिदिन गरीबोंको भोजन दिया जाता है....... गिरिडीहके श्रावकोंमें यह विशेषता देखी गई।
___ हम चार माह यहाँ रहे । बड़े निर्मल परिणाम रहे । बनारस विद्यालयके लिए यहाँसे पाँच हजार रुपयाका दान मिला । यदि कोई अच्छा प्रयास करे तो अनायास यहाँसे बहुत कुछ सहायता मिल सकती है। यहाँसे फिर ईसरी आ गया और यहाँ आनन्दसे काल जाने लगा।
यहाँसे हजारीबागरोड गया। श्रीसेठी भोंरीलालजी के यहाँ ठहरा। यहाँपर कई घर श्रावकोंके हैं,दो मन्दिर हैं, पूजा-प्रक्षाल समय पर होता है, स्वाध्याय भी होता है, शास्त्र-प्रवचनमें अच्छी मनुष्य-संख्या हो जाती है। यहाँसे फिर ईसरी आगया।
एक बार यहाँपर श्रीमान् चम्पालालजी सेठी आये। ये बहुत ही तेज प्रकृति आदमी थे, गोम्मटसार जीवकाण्ड और स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा कण्ठस्थ थी, निरन्तर स्वाध्यायमें काल लगाते थे, व्रत-नियम भी पालते थे, आप स्वतन्त्र रहते थे। एक बार आप त्यागी मोहनलालजीके पास चले गये। उन्हें आते देखकर आश्रमके अधिष्ठाता श्री खेमचन्द्रजी बहुत बिगड़े। श्रीचम्पालालजी
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