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गिरिराजकी पैदल यात्रा
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आज एन्समें पढ़ता है। बहुत ही सुयोग्य है । ऐसा पुण्यशाली है कि इसे सुयोग्य शिक्षक श्री नेमिचन्द्रजी एम. ए., जो कि अत्यन्त सदाचारी और निपुण हैं, मिल गये ।' मैने कहा- यह तो तुमने अच्छा कहा, परन्तु यह तो बताओं कि तुम्हारा नाम आलोक क्यों पड़ा।' वह बोला- इसमें भी कुछ रहस्य है- जिस दिन मेरा जन्म हुआ, उस दिन दीपमालिका थी। नगर भरमें प्रकाशपुञ्ज व्याप्त था, इससे पिताजीने मेरा नाम आलोक रख लिया ।' मैने कहा - 'बहुत ठीक, परन्तु यह तो बताओ कि आपकी माताका नाम रमादेवी क्यों हुआ ?' बालक बोला- 'इनके वैभवसे ही इनका रमादेवी नाम सार्थक हैं। फिर अपने आप बोला- 'अब शायद आप यह पूछेंगे कि पिताजीका नाम शान्तिप्रसाद क्यों हुआ ? मैंने कहा- हाँ।' उसने उत्तर दिया- जिनके अशोक और आलोक से सुपुत्र हों, रमा-सी, सुशीला और विदुषी गृहिणी हो, फिर भला वे शान्तिके पात्र न हों तो कौन होगा ?'
मैं बालककी तार्किक बुद्धिसे बहुत प्रसन्न हुआ । यह सब सामग्री अच्छे निमित्त मिलनेसे श्रीशान्तिप्रसादजीको प्राप्त हुई है जो कि विशेष पुण्योदयमें सहायक है। वर्तमानमें भी आप परोपकारादि कार्योंमें अपने समयका सदुपयोग करतें हैं । आपको विशेष कार्य था, इसलिये आप कलकत्ता चले गये। मैं यहाँपर एक दिन रहा ।
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डालमियानगरसे चलकर औरंगाबाद ठहरा। यहाँपर बाबू गोविदलालजी आ गये तथा एक दिनके लिए बाबू कन्हैयालालजी भी आ पहुँचे । आप बहुत ही शिष्ट हैं। जबतक गया नहीं पहुँचे तबतक आपका एक आदमी साथ बना रहा । यहाँसे चम्पारन पहुँचे। यहाँपर कई घर खण्डेलवालोंके हैं जो कि उत्तम आचरणवाले हैं । यहाँपर एक बहुत ही सुन्दर मन्दिर है । यहाँके निवासियों में परस्पर कुछ वैमनस्य था, जो प्रयत्न करनेसे शान्त हो गया । यहाँसे गयाके लिए प्रस्थानकर दिया। मार्गमें कर्मनाशा नदी मिली। उसका जल मनुष्य उपयोगमें नहीं लाते। लोगोंकी यह श्रद्धा है कि इसका जल स्पर्श करनेसे पुण्य क्षय होता है। आगे चलकर एक पुनपुनगंगा मिली। लोकमें इसका महत्त्व बहुत है। इसके विषयमें लोगोंकी श्रद्वा है कि इसमें स्नान करनेसे पितृलोगोंको शान्ति मिलती है ।
यहाँ से चलकर दो दिनमें शेरघाटी और वहाँसे चलकर दो दिनमें गया
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