________________
334
मेरी जीवनगाथा
भोजनादिसे निवृत्त होकर जब चलने लगे तब बहुत बारिस हुई। मार्ग में बड़ा कष्ट पाया। पाँच मील चलकर एक स्कूलमें ठहर गये । मास्टर साहब बहुत सज्जन पुरूष थे। उन्होंने स्कूल खाली करा दिया, धान्यका पियाल मँगा दिया तथा सर्व प्रकारका सुभीता करा दिया। हम लोगोंने उनके साथ पुष्कल धर्मचर्चाकी | आप जैनधर्मके सिद्धान्तोंकी प्रशंसा करने लगे ।
यहाँसे आठ दिन बाद हम लोग सकुशल डालमियानगर पहुँच गये । यह नगर सोनभद्र नदीके तटपर बसा हुआ है । यहाँपर श्रीरामकृष्णजी डालमिया, जो कि भारतवर्ष के गण्यमान्य व्यापारियोंमें प्रमुख हैं, निवास करते हैं । इसीसे यह नगर 'डालमियानगर' इस नामसे प्रसिद्ध हो गया है। आपकी सुपुत्री रमारानी है जो कि आंग्लविद्यामें विदुषी है। विदुषी ही नहीं, दयाकी मूर्ति हैं । आपके सौजन्यका प्रभाव साधारण जनतापर अच्छा है। आपकी वेषभूषा साधारण है। आपको भूषणों से कुछ भी प्रेम नहीं । निरन्तर ज्ञानार्जनमें ही अपना समय लगाती हैं। आपका सम्बन्ध श्रीमान् साहु शान्तिप्रसादजी नजीबाबादवालोंके साथ हुआ है। आपका कुल जैनियोंमें प्रसिद्ध है । आप पाश्चात्य विद्याके पण्डित ही नहीं, जैनधर्मके महान् श्रद्धालु भी हैं। आपके प्रयत्नसे यहाँ एक जैनमन्दिर स्थापित हो गया है। आप प्रतिदिन उसमें यथासमय धर्मकार्य करते हैं। आपकी माता बहुत धर्मात्मा हैं । उनके नामसे आपकी धर्मपत्नीने छह लाख रूपया दानमें निकाला है। आपके दो पुत्र हैं । एकका नाम अशोक और दूसरेका नाम आलोक | इनकी शिक्षाके लिये आपने श्रीमान् नेमिचन्द्रजी एम. ए., जो श्रीमान् पं. कुन्दनलालजी कटनीके सुपुत्र हैं, रख छोड़ा है। उन्हींकी देखरेखमें बालकोंकी शिक्षा होती है । श्रीचिरंजीवी अशोक बहुत ही अल्पवयमें एन्ट्रेस पासकर चुका है।
एक दिनकी बात हैं- आलोक बच्चा, जो छः वर्षका होगा, हमसे कहने लगा- आप जानते हैं हमारे बड़े भाईका नाम अशोक क्यों पड़ा ?' मैने कहा-जैसे लोकमें नाम रख लेते हैं वैसे ही आपके भाईका नाम रख लिया होगा ।' आलोक कहने लगा- 'नही, इसमें कुछ विशेष रहस्य है। यदि आपको समय हो तो कहूँ।' मैंने कहा- 'आनन्दसे कहिये।' वह कहने लगा- 'हमारे माता-पिताके कोई सन्तान न थी, इससे उन दोनोंके हृदयमें कुछ उद्विग्नता रहती थी और कुछ शोक भी। जब इस बालकका जन्म हुआ तब हमारे माता-पिताको अपूर्व आनन्द हुआ । उनका सब शोक नष्ट हो गया, इसलिए उन्होंने इसका अशोक नाम रख लिया । यह बालक चन्द्रवत् बढ़ने लगा और
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International