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________________ गिरिराजकी पैदल यात्रा वियोगमें विषाद न होना कठिन काम है । यहाँसे चलकर टेरका आया । यहाँपर दो मन्दिर और पन्द्रह घर जैनियोंके हैं । यहाँ पर समाजमें वैमनस्य था, वह दूर 1 हो गया । 321 यहाँसे चलकर मऊरानीपुर आया । यहाँ पर दस विशाल जैन मन्दिर और साठ घर जैनियोंके हैं । प्रायः सभी सम्पन्न हैं । यहाँ पर शैली अच्छी है । कई भाई स्वाध्यायके प्रेमी है । मन्दिरमें धर्मशाला है, उसमें सौ आदमी ठहर सकते हैं। यहाँ दो दिन रहकर मऊ चला गया । यहाँ पर मन्दिरोंका समुदाय अच्छा है, परन्तु अब जैनियोंकी न्यूनता है । यहाँ पर वैष्णव लोगोंके भी विशाल मन्दिर है। पूजापाठका प्रबन्ध उत्तम है। Jain Education International दो दिन रहकर यहाँ आलीपुरको चला। यह स्थान महाराज आलीपुरका है। आप क्षत्रिय हैं। आपका महल आलीपुरामें है । यहाँ पर एक दिन ठहरा । यहाँके राज्यका प्रबन्ध बहुत ही उत्तम है। आपके राज्यमें किसानोंसे मालगुजारीका रुपया नहीं लिया जाता । उत्पत्ति के ऊपर कर है । यदि छः मन गल्ला हुआ तो एक मन राजाको देना पड़ता है। यदि किसीको कोई अर्जी करनी पड़ती है तो महाराजके पास जाकर स्वयं निवेदन कर सकता है। कहनेका तात्पर्य यह है कि यहाँकी प्रजा बहुत आनन्दसे अपना जीवन बिताती है । I T यहाँसे चलकर नयागाँव छावनी आ गये और शोभाराम भैयालाल महेववालोंके यहाँ ठहर गये । यहाँ पर बुन्देलखण्ड राज्योंकी देख रेख करनेके लिये एजेण्ट साहब रहते हैं । यहाँसे चलकर महेवा आये । यहाँ पर भैयालालने पूर्ण आतिथ्य सत्कार किया । यह स्थान चरखारी राज्यमें है । यहाँकी प्रजा भी आनन्दसे जीवन बिताती है, परन्तु आलीपुरकी बराबरी नहीं कर सकती । यहाँ एक दिन रहकर राज्यस्थान छतरपुरमें आ गया । यह स्थान बहुत सुरम्य है । यहाँ पर संस्कृत शास्त्रोंका अच्छा भण्डार है। श्री बिहारीलालजी साहब संस्कृतके उत्तम विद्वान् हुए हैं। आपकी कविता प्राचीन कवियोंके सदृश होती थी । आप श्रीभागचन्द्रजी साहब के शिष्य थे । शान्त परिणामी और प्रतिष्ठाचार्य भी है । जिन दिनों आप भागचन्द्रजी साहबसे अध्ययन करते थे उस समय आपके साथमें पण्डित करगरलालजी पद्मावती पोरवाल भी अध्ययन करते थे । आप ही के सुपुत्र स्वर्गीय श्रीमान् न्यायदिवाकर पण्डित पन्नालालजी थे । जिनकी प्रतिभाको बड़े-बड़े विद्वान् सराहते थे । आप निर्भीक वक्ता थे । वाद करनेमें केशरी थे और असाधारण प्रतिष्ठाचार्य थे। बड़े-बड़े राजा आपको For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004000
Book TitleMeri Jivan Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshprasad Varni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year2006
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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