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मेरी जीवनगाथा
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नहीं रहा, अतः आपकी प्रवृत्ति स्वच्छन्द हो गई है। हम तो आपके प्रेमी हैं, प्रेमवश अपने हृदयकी बात आपके सामने प्रकट करते ही हैं। आपका जिसमें कल्याण हो वह कीजिए.... ।' बाईजीका नाम सुनकर पुनः उनके अपरिमित उपकारों का स्मरण हो आया। मैने सिघई जवाहरलालजीको कुछ उत्तर नहीं दिया और दूसरे दिन मैं श्रीनैनागिरिको चला गया।
यहाँ पर एक धर्मशाला है, उसी में ठहर गया। साथ में कमलापति सेठ भी थे। धर्मशालाके बाहर एक उच्च स्थान पर अनेक जिनालय हैं। जिनालयों के सामने एक सरोवर है। उसके मध्य भागमें एक विशाल जैन मन्दिर है, जिसके दर्शनके लिये एक पुल बना हुआ है। मन्दिरको देखकर पावापुरके जल मन्दिर का स्मरण हो आता है। मन्दिर के बनवानेवाले सेठ जवाहरलालजी मामदावाले थे। सामने एक छोटी-सी पहाड़ीपर अनेक जिनमन्दिर विद्यमान हैं। वहाँ पहुँचनेका मार्ग सरोवरके बाँधपरसे है। पहाड़ीकी दूरी एक फलांग होगी। मन्दिर के दर्शनादि कर भव्य पुण्योपार्जन करते हुए संसार स्थितिके छेदका उपाय करते हैं।
यहाँपर हम लोग दो दिन रहे। सागरसे सिंघईजी आदि भी आ गये, जिससे बड़े आनन्दके साथ काल बीता। सिंघईजीने बहुत कुछ कहा परन्तु मैंने एक न सुनी। मैंने सान्त्वना देते हुए उनसे कहा- भैया ! अब तो जाने दो। आखिर एक दिन तो हमारा और आपका वियोग होगा ही। जहाँ संयोग है वहाँ वियोग निश्चित है। यद्यपि मैं जानता हूँ कि आप मुझसे कुछ नहीं चाहते, केवल यही इच्छा आपकी रहती है कि मेरा काल धरममें जावे तथा कोई कष्ट न हो........ परन्तु मैंने एक बार श्रीगिरिराज जानेका दृढ़ निश्चय कर लिया है, अतः अब आप प्रतिबन्ध न लगाइये...... ।' मेरा उत्तर सुनकर सिंघईजीके नेत्रों में आँसुओंका संचार होने लगा और मेरा भी गला रुद्ध हो गया, अतः कुछ कह न सका। केवल मार्गके सन्मुख होकर बमौरीके लिये प्रस्थान कर दिया।
:२: शामके ५ बजते-बजते बमौरी पहुंच गया। यहाँके दरबारीलालजी उत्साही और प्रभावशाली व्यक्ति हैं। यहाँ दो दिन रहकर शाहगढ़ चला गया। यहाँ पर पच्चीस घर जैनोंके हैं। दो दिन रहा। यहाँके जैनी मृदुल स्वभावके हैं, जब चलने लगा तब रुदन करने लगे। चलते समय यहाँसे पच्चीस नारियल भेटमें आये। यहाँसे हीरापुर पहुंचा। यहाँपर छक्की-लाल सिंघई, जो कि
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