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गिरिराजकी पैदल यात्रा
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ही मरता है। फिर भी संसार में मोही जीव को एक दूसरे का आश्रय लेना पड़ता है। सब पदार्थ भिन्न-भिन्न है, फिर भी मोहमें परपदार्थ के बिना कोई भी काम नहीं होता। श्रद्धा और है, चरित्र में आना और है। श्रद्धा तो दर्शनमोह के अभाव में होती है और चारित्र चारित्रमोह के अभाव में होता है । मेरी यह श्रद्धा है कि आप मेरे से भिन्न हैं और मैं भी आपसे भिन्न हूँ, फिर भी आपके सहवास को चाहता हूँ। आपकी यह दृढ़ श्रद्धा है कि कल्याणमार्ग आत्मा में है, फिर भी आप शिखरजी जा रहे हैं। यह आपको दृढ़ निश्चय है कि ज्ञान और चारित्र आत्मा के ही गुण है, फिर भी आप पुस्तकावलोकन, तीर्थयात्रा तथा व्रत-उपवासादि निमित्तों को मिलाते ही हैं। इसी प्रकार मैं भी आपका निमित्त चाहता हूँ । इसमें कौन-सा अन्याय है। संसार से विरक्त होकर भी साधु लोग उत्तम निमित्तों को मिलाते ही हैं यह सिंघईजी का संदेश था सो आपको सुना दिया ।
बात वास्तविक थी, अतः मैं कुछ उत्तर न दे सका और दो दिन रहकर बण्डा चला गया। यहाँ पर श्री दौलतरामजी चौधरी बहुत ही धर्मात्मा हैं । उन्होंने आग्रहपूर्वक कहा- गिरिराज को जाते हो तो जाओ, बहुत ही प्रशस्त कार्य है । परन्तु नैनागिरिजी भी तो सिद्धक्षेत्र है, अनुपम और रम्य है । यहाँ पर सब सामग्री सुलभतया मिल सकती है। हम लोग भी आपके समागमसे धर्मलाभकर सकेंगे तथा आपकी वैया-वृत्यका भी अवसर हमको मिलता रहेगा और सबसे बड़ी बात यह है कि आपकी वृद्ध अवस्था है । इस समय एकाकी इतनी लम्बी यात्रा पैदल करना हानिप्रद हो सकती है, अतः उचित तो यही है कि आप इसी प्रान्तमें धर्मसाधन करें फिर आपकी इच्छा.......।'
मै सुनकर उत्तर न दे सका और दो दिन बाद श्री नैनागिरिजीको चला गया। बीच में एक दिन दलपतपुर रहा । यहाँ पर सिंघई जवाहरलालजी मेरे बड़े प्रेमी थे। वे बोले-'आप जाते हैं, जाओ । परन्तु हम लोगोंका भी तो कुछ विचार करना था। हम आपके धर्म में आज तक बाधक नहीं हुए । धर्मका उत्थान तो आत्मा में होता है, क्षेत्र निमित्तमात्र ही है । अज्ञानी मनुष्य निमित्तोंपर बहुत बल देते हैं, पर ज्ञानी मनुष्योंकी दृष्टि उपादानकी ओर रहती है । आप साक्षर हैं। यदि आप भी निमित्तकी प्रधानतापर विशेष आग्रह करते हैं तो हम कुछ नहीं बोलना चाहते। आपकी इच्छा हो,, सो कीजिए अथवा मेरी तो यह श्रद्धा है कि इच्छा से कुछ नही होता । जो होनेवाला कार्य है वह अवश्य होता है। बाईजीका एक विलक्षण जीव था। अब आपको शिक्षा देनेवाला वह जीव
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